Book Title: Murtipooja ka Prachin Itihas
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 535
________________ क्या ती• मुं० मुं• बान्धते थे! चन्द्रसूरि ३, विजयचन्द्रसूरि ४ (आर्य रक्षित), जिनवल्लभसूरिष, जिनदत्तसूरि ६, हेमचन्द्रसूरि ७, देवगुप्तसूरि आदि ये सब प्राचार्य मूर्तिपूजा के पक्के समर्थक और हाथ में मुँहपत्ती रखने वाले ही थे, इस शताब्दी में अनेक वादविवाद खण्डन-मण्डन पैदा हुए जैसे चन्द्रसूरि ने पूर्णिमियागच्छ की स्थापना की। विजयचन्द्रसूरि ने आंचलगच्छ का प्रवृत्ति की जिसमें श्रावक को पौषध व सामायिक में चरवाला मुंहपत्ती रखने का निषेध किया, भगवान महावीर के पाँच या छः कल्याणक की चर्चा, औरतों को प्रभु पूजा करना या नहीं करने का वाद विवाद हुआ। परन्तु मूर्तिपूजा और मुँहपत्ती के विषय में किसी प्रकार का खण्डन या मण्डन उस समय के साहित्य में दृष्टि गौचर नहीं होता है । अतएव उस समय मूर्तिपूजा और मुँहपत्ति हाथ में रखना शास्त्र सम्मत अखिल श्वेताम्बर समाज के लिए सर्वमान्य ही था। ३-आपने पूर्णिमा की पाक्षी करके एनिमियागच्छ की नींव डाली। ४-आपने श्रावों के सामायिक पौसहादि व्रत में चरवाला मुंहपत्ति का निषेध कर आँचल गच्छ अलग निकाला । ५-आपने संघ पटकादि कई ग्रन्थों का निर्माण किया। . -आपने संदोहदोहावलो आदि कई ग्रन्थों की रचना की और आप बड़े दादाजी के नाम से मशहूर हैं। ... .-अनुयोगद्वार सूत्र की टीका कर्या। (२६)-४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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