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मूर्ति पूजा का महत्व बैज्ञानिक युग में तो सांसारिक कार्यों के लिए भी पग पग पर मूर्ति की आवश्यकता रहती है । जैसे किसी व्यक्ति ने यहां रह कर यूरोपादि किसी प्रदेश का विवरण पढा तो उसे यह ज्ञान नहीं हुआ कि अमुक नगर, देश, पहाड़, बगीचा आदि किस श्राकार का और कहां पर है । परन्तु जब उस प्रदेश का हूबहू नकशा लाकर सामने रख दिया तो वह उन पदार्थों का अच्छी तरह से ज्ञान हासिल कर सकता है। यही क्यों, एक मनुष्य के खास चित्र से वह प्रत्यक्ष होने पर उसे हम पहिचान सकते हैं। क्या यह मूर्ति का प्रभाव नहीं है ? यदि है तो तत्त्वज्ञ मुमुक्षुओं को चाहिये कि पक्षपात को दूर हटा कर परमेश्वर की शान्त मुद्रस्थित ध्यान युक्त पद्मासनों पविष्ट मूर्ति का पूजन, वंदन कर अनेकों पुण्यों से प्राप्त इस अमूल्य मनुष्य जीवन को सफल बनावें । यही हार्दिक भावना है।
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