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मू०पू० वि० प्रश्नोत्तर
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नैगमनय के तीन भेद हैं ( १ ) अंश ( २ ) आरोप ( ३ ) विकल्प। दूसरे आरोप, के पुनः तीन भेद हैं भूतकाल में हो गया उसका आरोप भविष्य में होने वालों का भारोप, वर्तमान का आरोप । मूर्ति और सिद्धों को नमोत्थुणं अरिहन्ताणं पुरिस सिंहाणं "तन्नाणं तारियाण" इत्यादि पाठ बोले जाते हैं यह वर्तमान सिद्धों में नहीं है पर भूतकाल का आरोप करके ही कहा जाता है और पद्मनाभादि तीर्थंकर भविष्य में होने वाले हैं उनका स्थानायांगादि जैनागमों में व्याख्यान है वह भविष्य का आरोप है इसी कारण भरत चक्रवर्ती ने अष्टापद पर २३ भावि तीर्थंकरों की मूर्तियें बनाई एवं उदयपुर में पद्मनाभादि भावि तीर्थङ्करों की मूर्तियां विद्यमान हैं
प्र०--मूर्ति जड़ है उसको पूजने से क्या लाभ ?
उ.-जड़ में इतनी शक्ति है कि चैतन्य को हानि लाम पहुंचा सकता है । चित्र लिखित स्त्री जड़ होने पर भी, चैतन्य का चित्तीचंचल कर देती है। जड़ कम चैतन्य को शुभाऽशुभ फल देते हैं । जड़ भांग, चैतन्य को भान ( होश ) भुला देती है। जड़सूत्र चैतन्य को सद्बोध कराते हैं, जड़मूर्ति चैतन्य के मलीन मन को निर्मल बना देती है। मित्रों ! आजकल का जड़ मैस्मरेज्म और साइन्स कैसे २ चमत्कार दिखा रहे हैं, फिर यहां जड़ के बारे में कोई शंका न करके केवल मूर्ति को ही जड़ मान उप्तसे कुछ लाभ न मानना अपनी जड़ बुद्धि का द्योतक नहीं तोऔर क्या है ?
प्र०--पाँच महाव्रत की पच्चीस भावना और श्रावक के ९९ अतिचार बतलाये हैं। पर मूर्ति की भावना या अतिचार को कहीं भी नहीं कहा, इसका कारण क्या है ?
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