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मुख वस्त्रिकाधिकार
डोरा डालने का केवल जैनाचार्यों ने ही नहीं किन्तु स्वयं लौकागच्छ के प्राचार्यों ने भी सख्त विरोध किया है । क्यों कि साध्वी के साड़ा में डोरा डालना कोई कुलिङ्ग ( खराब-लक्षण ) नहीं किन्तु साधु के मुंहपर डोराडाल मुँहपत्ती बाँधना कुलिङ्ग और शासन की अवहेलना करवाना है।
- कई एक लोग कहा करते हैं कि खुले मुँह बोलने से वायुकाय के जीवों की विराधना होती है। इससे डोरा डाल मुंह पर मुँहपत्ती बाँधी जाती है। यदि सचमुच यही कारण हो तो फिर साध्वी के साड़ा का उदाहरण क्यों दिया जाता है ? क्यों कि वायुकाय के जीवों की हिंसा और साध्वी के साड़ा के डोरे का कोई सम्बन्ध नहीं है । अधोभाग- सभ्य मनुष्य का लज्जा स्थान है अतः सिवाय जिन-कल्प साधु के, हरेक मनुष्य इसे सर्वदा ढंका रखता है, परन्तु लौकिक व्यवहार में सदा सर्वदा अपना मुँह कौन छिपाये रखता है ? इसे प्रत्येक बुद्धिशील स्वयं सोच सकता है।
अब रहा वायुकाय के जीवों का सवाल ?-सो वायु काय के जीवों का शरीर आठस्पर्शी * है, और भाषा का पुद्गल है, चौस्पर्शी न तो चौस्पर्शी पुद्गलों से आठस्पर्शी शरीर वाले जीव मर नहीं सकते हैं। यदि भाषा का योग प्रवत्त'ने से एवं अन्य पुद्गल मिल जाने से चौस्पर्शी पु० अठस्पर्शी होजाते हैं तो फिर मुँहपत्ती बांधने से वायुकाय के जीवों की हिंसा (विराधना) रुक नहीं सकती है । क्यों कि जहां थोड़ा भी अवकाश है वहाँ वायुकाय के असंख्य जीव भरे पड़े हैं ।
* देखोः--भगवती सूत्र शतक १२-५। + पनवणा सूत्र पद १२ व पावणा सूत्र पद पहिला ।
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