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( २ ) ऐसे साधु हमारे लौंकाशाह के अनुयायी बन सकते हैं ? कदापि नहीं। मूर्त्ति० - इसी से ही तो हमने आप चार साधुओं के अलग अलग चित्र दिये हैं कि डोराडाल मुँहपत्ती मुँहपर बांधने वाले महावीर किस साधुओं के तीर्थङ्कर हैं। मुँहपत्ती का निशान मिलाने से - तो यही मालुम होता है कि यह महावीर नं २ के देशी साधुओं के ही हैं क्योंकि महावीर के मुँहपत्ती छोटी बंधाई है जैसे देशी साधु थे । सवाल यह होता है कि श्राप तो मुँहपत्ती हाथ में रखते हो इसलिये मुँहपत्ती बांधने वाला महावीर के साथ आप का कोई भी सम्बन्ध नहीं है पर विचारे परदेशी साधु या तेरपन्थियों का क्या हाल होगा। क्या वे छोटी मुँहपत्ती वाले महावीर को अपना तीर्थङ्कर मान लेगा ? या अपने सदृश बड़ी यां लंबी मुँहपत्ती वाले कोई अन्य महावीर की अलग ही कल्पना करेगा जैसे देशी साधुओं के लिये महावीर का चित्र है ।
- देशी साधुओं का भक्त - क्योंजी ! आपने हमारे साधु के पास परदेशी साधु या तरहपन्थी साधु को क्यों खड़ा कर दिया है । क्या इससे हमारे साधु का अपमान नहीं हुआ है ?
- मूर्ति० - हाय ! हाय !! इन साधुओं के अन्तर में इतना बड़ा लक्कड़ खड़ा होने पर भी एक दूसरा साधु को देखने मात्र से न जाने पाप का पहाड़ टूट पड़ता हो । यह कैसी साधुता । यह कैसी जगत-बन्धुता । हमने तो देशी परदेशो साधुत्रों को एक पाट पर विराजमान हो व्याख्यान देते देखा है, फिर आप अन्तर में लक्कड़ होने पर भी एक दूसरे देखने में ही अपना अपमान समझते हो । अफसोस ३ । खैर आप कुच्छ भी समझें । मैंने तो केवल महावीर के मुँहपर बन्धी हुई डोरा वाली मुँहपत्ती का मिलाने के लिये ही आप लोगों के साधुओं का चित्र दिया है
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