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तीन चित्रों का सम्बन्ध
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- स्थानकमार्गी - आपने अपनी पुस्तक में हमारे साधु चारजियों की मूर्ति, पादुका समाधि और फोटूओं को क्यों छपवाये हैं ? - मूर्तिपूजक - इससे आपको क्या नुकसान हुआ ?
-- स्थानक० - नुकसान हो या न हो पर आपको क्या अधिकार है कि किसी समुदाय के नेताओं के इस प्रकार चित्र आन छपा सको ?
-मूर्तिपूजक क्या आपने इन नेताओं की रजिस्ट्री करवाली है कि सिवाय आपके इनको देख भी न सके ? कृपया रजिस्ट्री का नम्बर तो बतलाइये ?
- स्था० – देख तो सकते हैं परन्तु श्रापका विचार शायद इन चित्रों को छपवाकर हम लोगों को मूर्ति अक बनाने का हो ।
- मूर्ति० - मूर्तिपूजक बनाने की क्या बात है, आपका अखिल समाज शुरू से ही मूर्तिपूजक है क्योंकि पूर्वाचार्यों ने जब से आपके पूर्वजों (त्रिआदि थे) को मांस मदिरादि बुरे आचरणों से छुड़वाकर वासक्षेप पूर्वक जैन बनाये थे, उसी दिन से आप मूर्तिपूजक हो हैं । यद्यपि बूरी संगति की वजह से आज आप परमेश्वर की मूर्ति मानने से दूर भाग रहे हैं तथापि आपका हृदय तो मूर्तिपूजा की ओर रजू है । इसीसे ही तो आप अपने पूज्य पुरुषों की मूर्ति पादुका समाधि और फोटू खिंचवाकर इनका पूज्य भाव से सत्कार करते हो और इन निर्जीव स्मारकों को अपने पूज्य मान रहेहो। क्या यह मूर्तिपूजा नहीं है ?
- स्था० - हम लोग हमारे पूज्यपुरुषों की मूर्ति, पादुका, समाधि और चित्रों को न तो साधु समझते हैं और न इनको वन्दन पूजन ही करते हैं ।
- मूर्ति - फिर क्यों कहा जाते हैं कि ये हमारे साधुओं के
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