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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
पर क्या करें हमारे पूज्यजी महाराज कहें उसे स्वीकार तो करना ही पड़ता है।
उ०-यह तो आप जैसा से ही बन आसकता है कि समझ लेने पर भी आप मिथ्या हट को नहीं छोड़ते हो और पूज्यजी की लीहाज में आकर अपना अहित करने को तैयार हो रहे हो । पर याद रखो इसका नतीजा इस भव और परभव में क्या होगा। अभी भी आपके लिये समय है, सोचो समझो और सत्य को ग्रहण करो। मुझे तो आपकी दया आरही है क्योंकि आप सच्चे जिज्ञासु हैं इसलिये ही कहना है कि आप परमेश्वर की पूजा कर आपना कल्याण करें, फिरतो श्रापकी मरजी।
प्र०--बस ! अब मैं आपको विशेष कष्ट देना नहीं चाहता हूँ क्योंकि मैं आपके प्रारंभिक प्रश्नोत्तर से ही सब रहस्य समझ गया, पर यदि कोई मुझ से पूछ ले उस को जवाब देने के लिये मैंने आप से इतने प्रश्न किये हैं। आपने निष्पक्ष होकर न्यायपूर्वक जो उत्तर दिया उससे मेरी आन्तरात्मा को अत्यधिक शान्ति मिली है। यह बात सत्य है कि बीतराग दशा की मूर्तियों की उपासना करने से आत्मा का क्रमशः विकास होता है । मूर्ति बिना क्या हिन्दू और क्या मुसलमान, क्या समाजी और क्या क्रिश्चियन किसीका भी काम नहीं चल सकता। चाहे वे प्रत्यक्ष में माने,चाहे परोक्ष में माने पर मूर्ति के सामने तो सबको शिर अवश्य झुकाना ही पड़ता है । मैं भी आजसे मूर्ति का उपासक हूँ और मूर्तिपूजा में मेरी दृढ़ श्रद्धा है-आप को जो कष्ट दिया, तदर्थ क्षमा चाहता हूँ।
और अब तो मेरे भोजन का समय हो गया है वास्ते रजा लेता हूँ। ___ उ-अच्छा भाईसाहब । आप गुणग्राही हैं और सत्य को ग्रहण करने वाले हैं इसलिए मैं मेरी टाइमको सफल समझता हूँ।
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