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मू० पृ० वि० प्रश्नोत्तर
पिता का दत्त दायजा देने का अधिकार है पर डोरावाली मुँहपत्ती और पूंजी का वहाँ भी जिक्र नहीं है । तब आपके पूज्यजी को केवल अनोखा यह स्वप्न कैसे आ गया ?
प्र० -- शायद महाबल का विवाह जैनेतरों के यहाँ हुआ हो और जैनों के घरों में सिवाय सुभद्रा के कोई कन्या जन्मी ही नहीं हो और इसी कारण सूत्रों में पूंजी और डोरा वाली मुंहपत्ती से शोभायमान कर कन्या को ससुराल भेजने का अधिकार न आया हो तो यह संभव हो सकता है ।
उ०- - वाह ! भाई वाह ! यह ठीक कहा । आपके अर्वाचीन पूर्वजों ने पूर्व किसी गति में रह कर तो कुदरत को भी उपदेश दे दिया होगा कि लाखों वर्षों तक जैनियों के घरों में एक सुभद्रा के सिवाय और किसी कन्या का जन्म तक भी नहीं होने दिया, खैर ! पर जब राजा श्रोणिक की रानिएँ काली, महा काली, नन्दा र सुनन्दा ने दीक्षा ली तो उनके साथ श्रोघा, पात्रा तो दिये पर आप की पूंजी और डोरा सहति मुंहपत्ति क्यों भूल गए ? क्योंकि आपकी मान्यतानुसार दीक्षा के समय तो उनकी खास जरूरत होती है । शायद आपके पूज्यजी अब उन शेष सूत्रों की भी टीकाएँ करेंगे तब ऐसा लिख देंगे और यह भी आपके लिए प्रमाणार्थ उपयोगी बन जायगा ।
वास्तव में न तो भगवान महावीर ने कूणिक को मुँह बाँधने का उपदेश दिया है और न किसी जैनशास्त्र में गुरु के लक्षण वर्णन में मुँहपत्ती बाँधने का जिक्र आया है । और न सुभद्रा को हाथ में पूँजी तथा डोरासहित मुँहपत्ती देकर शोभायमान बताई थी । और न यह शोभायमान के कारण ही हैं। पर यह
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