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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
मेहरबान ! जरा पक्षपात छोड़ एवं निर्णय बुद्धि रख, विचार करो ताकि आपका मालूम हो जाय कि शुद्ध सनातन एवं सत्य वस्तु क्या है ।
प्र० - हमारे पूज्यनो ने गुरु के लक्षणों में पृष्ट २१२ पर लिखा है कि :
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" भक्ति भाव से साथ चलने वाले गृहस्थों का, तथा अपने लिए बनाया हुआ आहार, नहीं लेने वाले होते हैं" फिर आप (जैन) तो संघ में तथा विहार में साथ चलने वालों से आहार पानी ले लेते हो यह क्यों ?
उ०- यह केवल कहने मात्र के लिए और आप जैसे भोले भावुक भक्तों को अपनी उत्कृष्टता बतलाने के लिए ही है । अन्यथा आपके पूज्य जवाहरलालजी म० जोधपुर का चौमासा कर वहाँ से विहार करके दो मोल नागौरी वेरा पर ठहरे और जोधपुर के भक्तों ने स्पेशियल द्वारा वहां पहुंच रसोई बनाई और उस रसोई से आपके साधुओं ने पात्रा भर २ कर गोचरी ली। शायद इसके लिये ही तो वह उल्लेख न किया हो पर स्वामी फूलचन्दजी जब करांची गए तब रास्ते में मांसाहारियों के ग्राम होने के कारण अपने साथ में गृहस्थों को रक्खे थे और उनसे अपनी गोचरी लेते थे तथा इसी तरह शिखरजी के रास्ते में दूसरा खास आपके इस सूत्र को छपाने वाले पूज्य घासीलालजी अपने शिष्यों के साथ करांची गए तब रास्ता में मांसाहारियों के ग्राम आये थे जगह गृहस्थों को साथ रक्खे और उनसे गोचरी ली। इस हालत में भी यदि आपके पूज्यजी महाराज दूसरों को उपदेश दें या उनकी निन्दा करें तो इसमें कौनसी सभ्यता है ?
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