________________
- मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३३२
प्र० – पृष्ठ २२८ पर हमारे पूज्यजी महाराज लिखते हैं कि " वीतराग भगवान की भक्ति करनी चाहिए, उनका दर्शन करना चाहिए और उनके वचन सुनना चाहिए" इनमें बचन सुनना और -भक्ति करना तो हमसे बन सकता है पर दर्शन कैसे हो सकते हैं क्योंकि वे तो मोक्ष में पधार गए हैं। इसका क्या उत्तर है ?
उ०- यह तो आप अपने पूज्यजी से ही पूछें कि वे आपको इस पंचम आरा में भी कोई वीतराग बतलादें। यदि आप उन्हें नहीं पूछकर मुझे ही पूछते हो तो चलो हमारे साथ मन्दिर में, हम आपको शान्तमुद्राऽवस्थित पद्मासन विराजमान बीतराग के दर्शन करवा दें। बिना इसके आपके पूज्यजी का पाठ सार्थक नहीं हो • सकता है समझेन ।
प्र० - पृष्ठ २३८ पर हमारे पूज्यजी ने गृहस्थों के लिए - सातवें व्रत में केवल २६ द्रव्य रखना ही लिखा है तो क्या इस से अधिक की जरूरत हो तो हम रख सकते हैं या नहीं ?
उ० – श्रावक जितना कम द्रव्य रक्खें, उतना ही अच्छा है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि वे२६ द्रव्योंसे अधिक नहीं रख सकें या जिन २६ द्रव्यों का आपके पूज्यजी ने नाम लिखा है उन्हें ही रक्खें | किन्तु जिस किसी को २६ द्रव्य में से किसी द्रव्य की आवश्यकता न हो वह उसे नहीं रक्खे और २६ द्रव्यों से इतर किसी अन्य द्रव्य की आवश्यकता हो तो उसे रख ले | अब यदि किसी को १२५ दव्य की आवश्यकता हों या किसी को ६ द्रव्य की ही जरूरत हों तो वह उतने ही रख सकता है । पूज्यजी ने तो जो २६ द्रव्य लिखे हैं वे श्रानन्दजी के रखने के अनुसार बिना सोचे समझे लिख दिये हैं और ज्यों त्यों करके अपनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org