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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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शायद, यह कारण तो न हो कि कई स्थानकवासी भाई भी श्रश्विन सुदि ७ से प्रारंभ होने वाली आंबिल ओली में शामिल हो जाते हैं, उन्हें रोकने के लिए ही अपना ओलि तप कृष्णपक्ष से पृथक् प्रारम्भ किया है । अथवा आपके ही समुदाय के प्र० मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने एक नया “श्रीपाल " कविता बद्ध बनाया है उसमें विल तप की महिमा श्रश्विन शुक्लपक्ष से लिखी है। क्या उसी का विरोध तो पूज्यजी ने कृष्णपक्ष लिख कर नहीं किया है ?
प्र० - बिल तो जब कभी करे, तभी अच्छा है । उ०- हाँ यह बात तो ठीक है, पर आंबिलतप आश्विन कृष्णाऽष्टमी से प्रारम्भ करवाना इसका क्या रहस्य है ? शायद यही तो न हो कि जिसको चोथमलजी स्वामी शुक्लपक्ष बतलावें तो पूज्यजी उससे उल्टा कृष्णपक्ष ही बतावें ताकि दोनों समुदाय के लोग आपस में मिल नहीं सकें ।
प्र० - जो कुछ हो परन्तु हमारे पूज्यजी ने कोई यों ही तो नहीं लिखा है, वे तो इतिहास के बड़े जानकार हैं, अतः सोच समझ कर ही लिखा होगा ?
उ - क्यों नहीं ऐसे विद्वान् जब इतिहास के जानकार हैं तब उनके कहने में शंका को स्थान ही क्यों मिले ? इसीसे तो आपके पूज्यजी ने उ० पृ० ४८ पर लिखा है:
"बेटी ! अपने घर में बुद्धदेव की उपासना होती है, तुम भी उन्हीं की उपासना किया करो" । अर्थात् सुभद्रा की सासु सुभद्रा को कह रही है कि अपने घर में
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