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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
३२८ बुद्धदेव की उपासना होती है तुम भी करो । परन्तु इसका क्या मतलब हुआ ? उपासना स्वयं बुद्धदेव की होती थी या उनको मूर्ति की । यदि बुद्धदेव की मूर्ति थी तो बुद्धके पूर्व जैनों में मूर्तिपूजा विद्यमान होना ऐतिहासिक साधनों से सिद्ध हो चुका है। इसलिये
आपके पूज्यजी की ऐतिहासिकता के विषय में कुछ अधिक न कह कर इतना ही कहना पर्याय है कि सुभद्रा के समय बुद्ध का जन्म हुआ था या नहीं, बुद्ध का समय और सुभद्रा का समय को मिलाने से आपको ज्ञात होगा कि सुभद्रा के समय बुद्धदेव का जन्म भी नहीं हुआ था तो उनका मत और मूर्तियों के लिए तो कहना ही कहाँ रहा ? फिरभी इसे जरा किन्हीं प्रामाणिक ऐतिहासिक साधनों पर निर्णीत कर बतलावें कि सुभद्रा के समय कौनसा बुद्धदेव था ?
प्र०-हमारे समुदाय में तो साधुनों को वन्दना “तिक्खुता" के पाठ से करते हैं और हमारे पूज्यजी महाराज ने इसी पुस्तक के पृष्ट ३६ पर लिखा भी है कि:__"गुरुओं के पास आकर "तिक्खुता" के पाठ से उन्हें वन्दन करते हैं ? पर आप “तिक्खुतो" न कह कर “इच्छामि खमासमणो" कहते हो, यह क्यों ?
उ०-"तिक्खुतो" तो ठीक, पर पाठ से वन्दना करने का क्या अर्थ है ?
प्र०-हमारे पूज्यजी महाराज ने ऐसा लिखा है। .. उ० -आपके पूज्यजी महाराज का ज्ञान तो अपार है, पर
आपको ही किसी ने समझाया तो होगा कि “तिक्खुता" के पाठ से वन्दन किस तरह की जाती है ?
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