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मू० पू० वि. प्रभोसर . उ०-तो क्या वे मूत्तियाँ हमारे जैन धर्म की हैं कि जिनके सामने पशु या नर बलि दी जाना बतलाते हो ? .. प्र०-मैं कब कहता हूँ कि वे जैन मूर्तियाँ हैं ? ___उ-तो फिर श्राप नरबलि का उदाहरण मूर्ति के साथ क्यों जोड़ देते हो ? यदि आप का यही श्राग्रह है तो आपके साधुनों के साथ भी माँस भक्षण की तुलना क्यों नहीं करते हो ? क्योंकि दुनियाँ में कई साधु भी माँस भक्षण करते हैं। वास्तव में यह आपकी अज्ञानता है कि आप बिना बिचारे यद्वतद्व बोल उठते हैं, फिर आपके घर पर आ पड़ती है तब लज्जित होना पड़ता है। वस्तुतः जैनमूर्तियों और जैन साधुओं का सत्कार-पूजा सात्विक पदार्थों से ही हुश्रा करता है और उनके निमित्त कारण से शान्ति, वैराग्य और आत्म-विकास होता है । समझे न भाई ?
प्र०-क्योंजी, कई लोग यह कहते हैं कि मन्दिर मूर्तियों के कारण ही देश दरिद्रावस्था में आ पड़ा है, क्योंकि मन्दिरों के निर्माण में करोड़ों, अरबों रुपये लगा दिये हैं और यह द्रव्य मुट्ठीभर अनार्य लुटेरों ने खूब लूटा । दूसरे, इन मन्दिरों के पुजारियों वगैरह के लिये और यात्रार्थ घूमने में कितना खर्चा बढ़ा दिया है, क्या यह देश का कम नुकसान है ?
उ०-आपके कथन से इतना तो स्वतः सिद्ध है कि मूत्तिपूजक समाज अपने द्रव्य बल से बड़ा ही सम्पत्ति सम्पन्न था कि वह चलते-फिरते हो करोड़ों रुपये मन्दिर मूर्तियों के निमित्त व्यय कर डालते थे कि जिनको न तो लुटेरे लूट सकते और न चौर ही चुरा सकते । हाँ, अनार्य लोगों ने धर्मान्धता के कारण भार्य मन्दिरों पर आक्रमण अवश्य किया, पर उन मार्य वीरों ने
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