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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
प्र०-मैंने सुना है कि प्रतिक्रमण करना आवश्यक सूत्र में बतलाया गया है।
उ०—अच्छा तो लीजिये ये ३२ सूत्र, इनमें आपका आवश्यक सूत्र भी है, जिसका भाषाऽनुवाद आपके पण्डित मुनि श्री अमोलखऋषिजी ने किया है। इसमें से एक अक्षर तो निकाल के बता दो कि इसमें श्रावक के प्रतिक्रमण, सामायिक और पोसह का उल्लेख है ? ___प्र०-आवश्यक सूत्र को हाथ में उठा कर अथ से इति तक पढ़ लिया, पर कहीं एक अक्षर भी श्रावक के सामायिक, प्रतिक्रमण और पोसह का नहीं मिला । तब लाचार हो दूसरा रूप बदला और हिम्मत कर कहा कि इसमें तो शायद नहीं है, पर इससे क्या हुआ, आनन्द और सक्ख श्रावक के अधिकार में
____उ०-अरे भाई ! वहाँ भी विधान नहीं है और यदि नामोल्लेख है भी तो यह चरित्राऽनुवाद है, विधि-वाद नहीं और
आप तो चरित्राऽनुवाद को मानने से इन्कार है तथा केवल विधि-वाद का प्रामह किये हुए हैं, किन्तु विधि-वाद में कहीं इनका ( सामायिक, पोसह और प्रतिक्रमण का ) नामोनिशान भी नहीं है, किन्तु फिर भी उन्हें तो मान लेना और परमेश्वर का पूजा के लिए विधि-वाद और चरित्राऽनुवाद का झमेला खड़ा करना यह कहाँ की बुद्धिमत्ता है ?
प्र०-तो क्या हमारे सामायिक, पोसह और प्रतिक्रमण चरित्राऽनुवाद से किये जाते हैं और इसी भांति मापके यहाँ
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