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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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सामायिक ३२ दोष वर्ज के करना कहा है। यदि किसो ने ३१ दोष टाले, किसी ने २९ दोष टाले, इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि एक दोष न टालने से सामायिक को ही छोड़ देना चाहिए। इसी प्रकार कई देश, काल ऐसे ही होते हैं कि, भनिच्छया जानबूझ के दोष का सेवन करना पड़ता है। जैसे साधुओं को पेशाब, टट्टी प्राम व नगर में नहीं परठना, ऐसा शास्त्रों में आदेश है, पर वे देशकाल को देख, जानबूझ कर इस दोष का सेवन करते हैं, ऐसे २ एक नहीं पर अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं।
प्र--सूत्रों में १२ कुल की भिक्षा लेना कहा है तब श्राप लोग एक जैन कुल की हो भिक्षा क्यों करते हो ?
उ०-जैन कुल की भिक्षा लेना तो मना नहीं है न, जो १२ कुल की भिक्षा लेना लिखा है पर उस समय वे सब कुल प्रायः जैन धर्म पालन करते थे। उनका श्राचार, व्यवहार शुद्ध था और जैन मुनियों को बड़े ही आदर से भिक्षा दिया करते थे पर आज वे कई लोग जैन नहीं रहे, जिन के यहाँ ऋतुधर्म पालन नहीं होता हो, वासीविद्वल से परहेज नहीं, सुवासुतक (जन्म-मरण) का ख्याल नहीं, चार महा विगई आदि भभक्ष पदार्थों का त्याग नहीं, साधु को देख निंदा या दुगंच्छ करते हों अनादर से भिक्षा देते हों जिस कुल में भिक्षार्थ जाने से जैनधर्म व जैनसाधुओं की निन्दा होती हो ऐसे कुल में भिक्षा को जाना शास्त्रों में मना किया है। देखो "दशवकालिक सूत्र पांचवाँ अध्ययन पहला उद्देशा की सतरहवीं गाथा" तथो पूर्वोक्त कुल में भिक्षार्थ जाने से चतुर्मासिक प्रायश्चित होना भी निशीथ सूत्र में बतलाया है । . प्र०-सूत्रों में २१ प्रकार का पाणी लेना कहा है, आप केवल:
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