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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर उष्ण जल हो लेते हो तो क्या इसमें आधाकर्मी का दोष नहीं लगता होगा ?
उत्तर-२१ प्रकार का पानी लेना हम इन्कार नहीं करते है पर शास्त्रों में बतलाया वैसा पानी मिले तो लेना कोई दोष नहीं है, पर चूल्हों के पास अनेक प्रकार के पाणी एकत्र हो वैसा पानी लेना शास्त्रों में कहां भी नहीं कहा है कारण विस्पर्श होने से उसमें असंख्य त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं और अन्न संयुक्त पाणी में निगोदें जीव भी पैदा होते हैं और धोवण का काल भी थोड़ा है । वर्ण गन्ध रस स्पर्श पलटने से उसमें असंख्य जीव, पैदा होना आचारांग सूत्र में कहा है इसलिये जहां फाशुक धोवन न मिले वहा गरम पानी लेना मना नहीं है। अब रही श्राधाकर्मी की बात उसको भी सुन लीजिये कि न तो केवल गरम पानो लेने से आधा कर्मी दोष लगता है
और न धोवण लेने से दोष से बच भी सकता है कारण बड़े-बड़े नगरों में गरम पाणी निर्दोष मिलता है तब छोटे गांवड़ों में धोवण भी दोषित मिलता हैं । गरम पानी पीने वालों को तो कहांकहां स्थावर जीवों का ही अपवाद से किंचित् दोष लगता है पर धोवण वालों को स्थावर जीवों के अलावे धोवण को काल के उपरान्त रखने से त्रसजीवों का भी पाप लगता है। कई लोग तो राख का, छाछ का, आटा का और साकर का पानी लेकर पीते हैं वे तो ऐसा पानी लाते हैं कि मानो प्रत्यक्ष में कच्चा पानी का ही सेवन करते हैं। हाँ, कपटाई और माया मृषावाद का पाप विशेष में सेवन करते हैं । बन्धुओं ! गामड़ों में जैन लोगों की बस्ती बहुत कम हो जाने से विहार के समय अपवाद में ऐसे दोष सबको
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