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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर है कि चार दीवारों के बीच भोली भाली बहिनों के सामने कल्पित बात पर आप अपने को सच्चा समझलें। आज जमाना तो अपनी मान्यता का प्रामाणिक प्रमाणों द्वारा मैदान में सत्य बतलाने का है। क्या कोई व्यक्ति यह बतला सकता है कि लौकाशाह पूर्व इस संसार में जैनमूर्ति नहीं मानने वाला कोई व्यक्ति था ? कदापि नहीं!
विशेष खुलासा देखो ऐतिहासिक नोंध की ऐतिहासिकता, नामक पुस्तक ।
प्र०-भगवान् के फरमाये हुये सूत्र कितने हैं।
उ०.-भगवान् ने सूत्र नहीं बनाये उन्होंने तो अर्थ रूपी देशना दी जिनको गणधरों ने द्वादशांगी अर्थात् १२ अंगों की रचना-संकलना की और इन १२ अंगों में सब लोकालोक का ज्ञान आजाता है।
प्र०-फिर यह क्यों कहा जाता है कि ३२ सूत्र भगवान के फरमाये हुए हैं। ___उ०-ऐसा किसी सूत्र में लिखा है ? या भोलों को भ्रम में डालने का धोखा है । क्योंकि यह कहीं पर नहीं लिखा है कि जैनों में ३२ सूत्रों को भगवान ने कहा उनकी ही मान्यता है यदि ३२ सूत्रों को माना जाय तो इसमें नन्दी सूत्र भी शामिल है और नन्दीसूत्र में ७३ सूत्र और १४००० प्रकरण मानने का भी उल्लेख है । यदि ७३ सूत्रादि नहीं मानें तो ३२ सूत्र को भी नहीं माना जा सकता है फिर यह क्यों कहा जाय कि हम ३२ सूत्र मानते हैं स्थानायांग सूत्र में चार पन्नति सूत्र कहे हैं उसमें तीन को मानना और एक द्वीपसागरपन्नति सूत्र को नहीं मानना कहां का न्याय
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