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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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(२९) दशवैकालिक सूत्र जिन प्रतिमा के दर्शन से शय्यंभव भट्टको प्रतिबोध हुआ।
(३०) नन्दीसूत्र में विशल नगरों में जिनचैत्य को महा प्रभाविक कहा है।
(३१) अनुयोगद्वार सूत्र में चार निक्षेप का अधिकार में स्थापना निक्षेप में अरिहन्तों की मूर्ति अरिहन्तों की स्थापना कही है।
(३२) आवश्यक सूत्र में अरिहन्त चेइप्राणिवा तथा कित्तिय वंदिय महिया जिसमें कित्तिय वंदिय तो भाव पूजा और महिया द्रव्य पूजा कहा है।
इन ३२ सूत्रों के अलावा भी सुत्रों में तथा पूर्वचार्यों के ग्रंथों में जिन प्रतिमा का विस्तृत वर्णन है पर आप लोग ३२ सूत्र ही मानते हैं इसलिये यहां ३२ सूत्रों में ही जिन प्रतिमा का संक्षिप्त से उल्लेख किया है।
प्र०-इसमें कई सूत्रों के आपने जो नाम लिखे हैं वहाँ मूलपाठ में नहीं पर टीका नियुक्ति में है वास्ते हम लोग नहीं मानते हैं ?
उ०--यह ही तो आपको अज्ञानता है कि स्थविरों के रचे उपांगादि सूत्रों को मानना और पूर्वधरों की रची नियुक्ति टीका नहीं मानना । भला पहले दूसरे सूत्रों के अलावा ३. सूत्रों के मूल पाठ में मूर्तिपूजा का उल्लेख है, वे तो आपको मान्य हैं ? यदि है तो उसको तो आप मान लीजिये कि आपका कल्याण हो ।
प्र०-आप मुंहपत्तो हाथ में रखते हो इसमें खुले मुंह
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