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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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पत्ती रखना यह परम्परा महावीर की है और मुंह पर बांधना यह वि० सं० १७०८ लवजी स्वामि को चलाई नूतन प्रथा है ।
प्र०—- आप सामायिकादि क्रिया को आदि में मुँहपत्ती का प्रतिलेखन करते हो वह शायद दिन को तो जीवों को देखने के लिये करते होंगे, पर रात्रि में भी मुँहपत्तो का प्रतिलेखन क्यों करते हो क्या रात्रि में भी जीव देखते हो ?
उ०- मुँहपत्ती का प्रतिलेखन केवल जीवों को देखने के लिये ही नहीं है पर इसमें बड़ा ही रहस्य है। सामायिकादि प्रत्येक क्रिया करने के पहिले आत्मशुद्धि को श्रावश्यकता है और मुँहपत्ती प्रतिलेखन द्वारा पहले श्रात्मशुद्धि की जातो है । मुँहपत्ती प्रतिलेखन केवल कपड़े को इधर उधर करना ही नहीं है पर उसके अन्दर निम्नलिखित चिन्तवन करना पड़ता है जैसे मुँहपत्ती के पुड़ खोलते समय कहा जाता है कि ( १ ) सूत्र अर्थ सच्चा श्रद्ध हूं ( २ ) सम्यक्त्व मोहनीय ( ३ ) मिध्यात्व मोहनीय ( ४ ) मिश्र मोहनीयपरिहरू (परित्याग करूँ ) बाद दृष्टिप्रतिलेखन समय (५) कामराग, ( ६ ) स्नेहराग ( ७ ) दृष्टिराग परिहरू, बाद (८) सुदेव ( ९ ) सुगुरु (१०) सुधर्म बदरूँ, बाद (११) कुदेव ( १२ ) कुगुरु (१३) कुधर्म परिहरूँ | बाद (१४) ज्ञान (१५) दर्शन (१६) चारित्र श्राद (१७) ज्ञान विराधना ( १८ ) दर्शन विराधना ( १९ ) चारित्र विराधना परिहरूँ ( २० ) मनोगुप्ति ( २१ ) वचनगुप्ति ( २२ ) काय गुप्ति श्रादरूँ ( २३ ) मनोदंड ( २४ ) बचनदण्ड (२५) कायदण्ड परिहरू एवं २५ बोलों द्वारा मुँहपत्ती का प्रतिलेखन करके बाद शरीर का प्रतिलेखन किया जाता है जैसे - मुँहपत्ती को मस्तक पर
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