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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर ज्यों ज्यों वे कुयुक्तियों और असभ्यता पूर्वक हलके शब्दों में मूर्ति की निन्दा करते हैं त्यों त्यों मूर्तिपूजकों की मूर्ति पर श्रद्धा दृढ़ एवं मजबूत होती जा रही है। इतना ही नहीं पर किसी जमाने में सदुपदेश के अभाव से भद्रिक लोग मूर्तिपूजा से दूर रहते थे वे भी अब समझबूझ कर मूर्ति उपासक बन रहे हैं जैसे-आचार्य विजयानन्दसूरि ( आत्मारामजी ) का जोधपुर में चतुर्मास हुआ उस समय मूर्तिपूजक केवल १०० घर ही थे पर आज ६००७०० घर मूर्तिपूजकों के विद्यमान हैं । इसी प्रकार तीवरी गाँव में एक घर था आज ५७ घर हैं, पीपाड़ में नाम मात्र के मूर्तिपूजक समझे जाते थे आज बराबर का समुदाय बन गया, बीलाड़ा में एक घर था आज ४० घर हैं, खरिया में सवेगी साधुओं को पाव पानी भी नहीं मिलता था आज बराबरी का समुदाय दृष्टिगोचर हो रहा है इसी भांति जैतारण का भी वर्तमान हैं। रूण में एक भी घर नहीं था आज सबका सब ग्राम मूर्तिपूजक है, खजवाना में एक घर था आज ५० घरों में २५ घर मूर्तिपूजने वाले हैं कुचेरा में ६० घर हैं। बड़े-बड़े शहर तथा नगरों में तो और भी विशेष जागृति हुई है और मेवाड़ मालवादि में भी छोटे-बड़े प्रामों में मन्दिर मूर्तियों की सेवा-पूजा करने वाले सर्वत्र पाये जाते हैं जहां मन्दिर नहीं थे वहाँ मन्दिर बन गये, जहाँ मन्दिर जीर्ण होगये थे वहाँ उनका जीर्णोद्धार हो गया। जो लोग जैन सामायिक प्रतिक्रमणादि विधि से सर्वथा अज्ञात थे वे भी अपनी विधि विधान से सब क्रिया करने में तत्पर हैं। मेहरबानों यह आपकी खण्डन प्रवृत्ति से ही जागृति हुई है।
श्रात्म-बन्धुओं ! जमाना बुद्धिवाद का है जनता स्वयं अनु
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