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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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यह भगवानऋषभ देवको मूर्ति है। यह वाणी भगवान्ऋषभदेवकी है। यह भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति है। यह वाणीभगवान्पार्श्वनाथनेकही। यह भगवान् महावीरकी मूर्ति है। यहबातभगवान्महावीर नेकही। मूर्ति के निमित्त कारण से | सूत्रों के निमित्त कारण से भी तीर्थंकरों का ज्ञान होता है। तीर्थंकरों का ज्ञान होता है
इसलिए मूर्ति उपकारी है। अतः सूत्र उपकारी है मूर्ति तीर्थंकरों की होने से | सूत्र तीर्थंकरों की वाणी होने से
उनकी ८४ श्राशातना टाली ___ उनकी ३४ असज्जाइये जाती है।
बरजी जाती हैं। मूर्ति तीर्थंकरों की होने के सूत्र तीर्थंकरों की वाणी होने से कारण उच्च पबासन पर
___ उच्च पाट तथा ठवणी पर विराजमान कर पूजी जाती
रख पढ़े जाते हैं। सूत्रों के है । मूर्ति के पक्षाल, मुकुट
पढ़ने से ती करों की कुण्डल ध्यानमुद्रा देखने से
बाल्याऽवस्था, राज्याऽवस्था तीर्थकरों की क्रमशः जन्म,
और वीतरागाऽवस्था का राज्य और वीतराग दशा का ज्ञान होता है।
ज्ञान होता है। इस प्रकार मूर्ति और सूत्र ये दोनों तीर्थंकरों का वास्तविक ज्ञान होने के निमित्त कारण हैं और इन कारणों से हमको ज्ञान, वैराग्य और शान्ति मिलती है। अतः हमारे लिए दोनों पज्य हैं । हम केवल भूर्ति पूजक ही नहीं पर मूर्ति के द्वारा तीर्थकरों के पूजक हैं। हमारे चैत्यवन्दन में, स्तुति में, स्तवन में, प्रार्थना में जहाँ देखो वहाँ तीर्थंकरों की ही पूजा, आती है न कि केवल मूर्ति की जरा हमारे भक्ति भरे हृदय के उद्गार तो देखिये कि हम मूर्ति के सामने बद्धकर हो क्या कहते हैं:
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