________________
२१५
मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर प्र०-खैर हमारी तो मान्यता सूत्रों पर है, पर क्या जैन सूत्रों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उ०-अरे भाई ! सूत्रों में तो क्या पर सूत्र स्वयं भी तो मूर्ति स्वरूप हैं:-पन्ने, मूर्ति-स्याही, मूर्ति-कलम मूर्ति, लिखने वाला मूर्ति, लिखाने वाला मूर्ति, पढ़ने वाला मूर्ति, पढ़ाने वाला मूर्ति, समझने वाला मूर्ति, समझाने वाला मूर्ति, उपदेश देने वाला मूर्ति, और उपदेश सुनने वाला मूर्ति, इस प्रकर सारा विश्व तो मूर्ति मय है फिर सूत्रों में मूर्ति विषयक उल्लेख का पूछना ही क्या है। ऐसा कोई सूत्र नहीं है, जिसमें मूर्ति विषयक उल्लेख न मिलता हो। चाहे ग्यारहअंग, बत्तीससूत्र और चौरासी आगम देखो, मूर्ति सिद्धान्त व्यापक है, यदि इस विषय के पाठ देखने हों तो हमारी लिखी प्रतिमा छत्तीसी, गयवर विलास
और सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली तथा हाल ही में छपा "मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास," नाम की पुस्तकें देखो।
प्र०-सूत्रों को श्राप मूर्ति कैसे कहते हैं ? ।
उ०-मूर्ति का अर्थ है, आकृति (शकल ) सूत्र भी स्वर, व्यजन वर्षों की श्राकृति ( मूर्ति ) ही तो है ।।
प्र०-मूर्ति को तो आप वन्दन, पूजन करते हो, पर आपको सूत्रों का वन्दन पूजन करते नहीं देखा ?।। ___उ०-क्या आपने पयूषणों के अन्दर पुस्तकजी का जुलूस नहीं देखा है ? जैन लोग पुस्तकजी का किस ठाठ से वन्दन पूजन करते हैं ! और आप भी तो सूत्रों का बहुमान करते हैं ।
प्र०-हम लोग तो सूत्रों का वन्दन पूजन नहीं करते हैं । उ०-यही तो आपकी कृतघ्नता है कि सूत्रों को वीतराग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org