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मूर्तिपूजा की प्राचीनता ।
जीवों के कल्याण के लिए स्थापित मूर्त्तिपूजा का भी यत्र तत्र प्रचुरता से उल्लेख मिलता है। क्योंकि – कल्याण, और तत् हेतुरूप मूर्तिपूजा के आपस में घनिष्ट ही नहीं अपितु घनिष्टतम सम्बन्ध है । और यह बात अनुभव सिद्ध होने से इसमें किसी प्रमाण की भी आवश्यकता नहीं है । तद्यपि श्राज पुरातत्वज्ञों की शोध एवं खोज से इतने प्राचीन प्रमाण उपलब्ध हुए हैं कि वे मूर्तिपूजा को संसार के सदृश ही प्राचीन सिद्ध कर रहे हैं ।
फिर भी यहाँ पर यह सवाल पैदा होता है कि यदि मूर्त्तिपूजा इतनी प्राचीन है तो इसका विरोध, किस कारण, कत्र, और किसने किया ?
इतिहास की पूर्ण गवेषणा द्वारा यह निश्चय हो चुका है कि विक्रम की सातवीं शताब्दी पूर्व क्या यूरोप, क्या एशिया, अर्थात् सब संसार मूर्तिपूजा का उपासक था । पैग़म्बर मुहम्मद साहिब के पूर्व किसी देश, किसी जाति, किसी व्यक्ति और किसी साहित्य में ऐसा शब्द दृष्टिगोचर नहीं होता है कि, कोई
अथवा अनार्य उस समय मूर्तिपूजा को अस्वीकार करता हो । हाँ! सर्व प्रथम पैग़म्बर मुहम्मद साहिब ने अस्तान में मूर्तिपूजा के विरुद्ध घोषणा की थी, जिसे ( हिजरी सन के अनुसार ) आज १३५८ वर्ष हुए हैं। इसका कारण शायद उस समय उस देश में मूर्तिपूजा की प्रोट में कुछ अत्याचार होता हो । पर मुहम्मद सहिब ने उस समय अविचार से काम लिया । आपने "शिर पर बाल बढ़ जाने से बालों के बजाय शिर को काट डालने का" प्रोग्राम किया अर्थात् अत्याचार का विरोध न करके मूर्तिपूजा का ही विरोध कर डाला । वह भी किन्हीं पुष्ट
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