________________
१३
मूर्तिपूजा की प्राचीनता। हैं कि "शैयद ना आशिष वचन थी" लौंकाशाह पर प्रारम्भ से ही शैयद की आशिष का बुरा असर पड़ा हुआ था। अब जरा अन्य विद्वानों के भी इस विषय के मत यहाँ उद्धृत करते हैं:
(३) इतिहास मर्मज्ञा एक अंग्रेज महिला मीसीस स्टीवन्सन लिखती ह कि "हिन्द में इस्लाम संस्कृति का आगमन होने के बाद मूर्ति-विरोध के आन्दोलन प्रारंभ हुए, और उनके लंबे समय के परिचय से इस आन्दोलन को पुष्टि मिली "
x
x (४) पं० सुखलालजी अपने पर्युषणों के व्याख्यान में लिखते हैं कि "हिन्दुस्थान में मूर्ति के विरोध की विचारणा मुहम्मद पैगम्बर के पीछे उनके अनुयायी अरबों और दूसरों के द्वारा धीरे-धीरे प्रविष्ट हुई। x x x जैन परम्परा में मूर्ति-विरोध को पूरी पाँच शताब्दी भी नहीं बीती है।"
(१) श्रीमान् अवनीन्द्रचन्द्र विद्यालंकार अपने पठान काल का सिंहावलोकन नामक लेख में लिखते हैं कि:___ "x x पर मुसलमानों की सभ्यता एक दम निराली थी। वे जाति पाँति और मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे, हिन्द मैं इनके आने के बाद ही मूर्ति पूजा के विरोध का प्रबल अान्दोलन उठ खड़ा हुआ था ('माधुरी' मासिक पत्रिका)x"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org