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प्रकरण तीसरा
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वह मोक्ष का कारण क्यों नहीं होता है ? इस में पक्षपात के लावा दूसरा कोई कारण नजर नहीं श्राता है और इस ज्ञान युग में इस मिथ्या पक्षपात की हांसी के सिवाय क्या कीमत हो सकती है ?
उपसंहार
९ - देवलोक में
शाश्वति जिनप्रतिमाएँ हैं, वे सब तीर्थकरों की ही है और उन्हें कामदेव को कहने वाले शास्त्रों के बिलकुल अनभिज्ञ हैं ।
२ - जैन दर्शन स्याद्वाद को माननेवाला है, द्रव्यास्तिनयापेक्षा लोक को शाश्वता और पर्यायस्तिनयपेक्षा लोक को अशाश्वता मानते हैं । तदनुसार देवलोक और तत्रस्थित जिनप्रतिमाओं को भी शाश्वत मानते हैं ।
३ - देवता सम्यग्दृष्टि होने से उनकी की हुई तीर्थकरों की वन्दना और तीर्थकरों की मूर्तियों की पूजा मोक्ष का कारण है ।
४ - मूर्तिपूजा का फल यावत् मोक्ष का बतलाया है इस लिये मोक्षाभिलाषी जीवों को मूर्ति की द्रव्य भाव से यथाधिकार पूजा अवश्य करनी चाहिये ।
५- इस प्रकार शास्त्रकारों की आज्ञा का पालन करने वाले ही सम्यग्दृष्टि कहला सकते हैं और जिन वचनों को न्यूनाधिक कहने वाला निन्हव मिथ्यात्वी को पंक्ति में समझा जाता है ।
६ - इस प्रकरण को आद्योपान्त पढ़ कर यदि मिथ्यात्वोदय और उत्सूत्र प्ररूपकों के अधिक परिचय से झूठी श्रद्धा हृदय में
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