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प्रकरण पांचव
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(२३) विशाला नगरी के आसपास के प्रदेश में पुरातत्व विभाग की ओर से शोध खोज का श्रारम्भ होने पर इतने ध्वंसाऽवशेष मिले हैं कि जिन पर गवेषणा पूर्वक विचार कर योरोपियन विद्वानों ने अपने निष्पक्ष मानस से यह स्पष्ट बतला दिया है कि ये स्मारक चिन्ह भगवान् महावीर के सम सामयिक हैं। भूगर्भ से प्राप्त इन साधनों से यह भी निःसंदेह पाया जाता है कि जैनियों में बहुत प्राचीन काल से ही धार्मिक साधनों में जैन मन्दिर, मूर्तिएँ, स्तूप और पादुकाए श्रादि प्रधान समझी जाती थीं। आजतक जैनों के जितने प्राचीन चिन्ह प्राप्त हुए हैं वे सब के सब मूर्तिपूजा के प्राचीनत्व को परिपुष्ट करते है । परन्तु ऐसा साधन तो एक नहीं मिला कि जो अपवाद रूप से भी कचित् मूर्तिपूजा का विरोध करता हो ? इतने पर भी क्या अब हमारे - स्थानकवासी भाई यह विचार करेंगे कि वास्तविक तथ्य क्या है ? (३) श्रोसियां में देवी के मन्दिर के पृष्ठ भाग में एक देहरी के पीछे प्राचीन जैन मूर्ति पूजित विराजमान है। यह मूर्ति भी उतनी ही प्राचीन है जितना कि प्राचीन श्रौसियां का जैन मन्दिर है । जिन्हें विश्वास न हो वे वहाँ जाकर स्वयं देख सकते हैं
(२४) मारवाड़ की प्राचीन राजधानो मण्डोर के भन किले में एक दुमंजिला जैन मन्दिर खण्डहराऽवस्था में विद्यमान है, उसकी देहरियों के छबना के पत्थरों में भी छोटी-छोटो जैन मूर्तियें विद्यमान हैं, ये भी बहुत प्राचीन हैं जिनका कि चित्र यहाँ दिया जाता है ।
(२५) रायबहादुर पं० श्रीमान् गौरीशंकर ओझा ने
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