________________
१४१
प्रचीन जैनमूर्तियाँ की प्राचीन है तथा उस समय भी जैनधर्म में मूर्तिपूजा आमतौर से प्रचलित थी इसका ही यह पर्याप्त प्रमाण है देखो चित्र ।
(१९) बैनातट नगर के प्रदेश में मिली हुई पार्श्वनाथ की प्राचीन मूर्ति विक्रम पूर्व दो तीन शताब्दियों की है जिसका चित्र इसी पुस्तक में अन्यत्र है। डॉ० त्रिभुवनदास लहरचंद ने भी अपने "भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास के दूसरा भाग में" इसको चर्चा करते हुये लिखा है कि यह मूर्ति विक्रम पूर्वं तीसरी शताब्दी की है।
भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास पृ० १२२ (२०) श्रावस्ती नगरी के शोध खोज से भूमध्य में से एक श्रोसंभवनाथ का मन्दिर निकला है । इस मन्दिर ने ऐतिहासिक क्षेत्र पर अच्छा प्रकाश डाला है । इस खोद काम से और भी अनेक खण्डहर मिले हैं। जिनके विषय में विद्वानों का मत है कि ये भगवान् महावीर के पूर्व के स्मारक हैं और स्वयं भगवान् महावीर भी यहाँ पधारे हुए हैं । देखो
जैन ज्योति अंक ता० २५-४-३६ (२१) अंग्रेजों के खोद काम से मिली हुई एक जैन मूर्ति पर वीरात् १८४ वर्ष का शिलालेख अङ्कित है, तथा वह मूर्ति कलकत्ता के म्यूजियम में सुरक्षित है।
(२२)जैन पत्र ता० ८-१२-३५ पृष्ट ११३१ पर एक पुरा-- तत्वज्ञ ने एक मूर्तिपूजा की प्राचीनता बताते हुए भूगर्भ से प्राप्त एक (जैन) मूर्ति को ई० सन् के पूर्व छठी शताब्दी का बताया है। अर्थात् भगवान महावीर के सम सामयिक उस मूर्ति का होना. सिद्ध किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org