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मगधेश श्रेणिक का मन्दिर
मगध के राजा नंद का समय महावीर निर्वाण से दूसरी शताब्दी का है, अतएव इस घटना से इतना तो निश्चयात्मक कहा जा सकता है कि उस समय जैन शासन में मूर्तिपूजा का प्रचार आम तौर पर था, पर यह नहीं कहा जा सकता है कि मूर्ति पूजा उसी समय शुरु हुई थी, क्योंकि राजा नंद जिस मंदिर से जैन मर्ति उठा के लेगया वह मंदिर उस रोज तो कोई बना ही नहीं था, और जब कभी बना होगा तब भी किसी दूसरे मंदिर के नकशे से बना होगा ? ऐसी हालत में मूर्तिपूजा की प्राचीनता में सन्देह करने वालों को कोई कारण शेष नहीं रहता है, फिर भी वे यदि अपने हठ को न छड़ें तो उनकी बुद्धि को क्या कहा जाय ? आगे चल कर हम यह बतावेंगे कि इस मंदिर को किसने बनाया ? ___जैन पट वलियों में आचार्य हेमवन्त सरि की पटावली सब से प्राचीन समझी जाती है। आचार्य हेमवन्त सूरि प्रसिद्ध स्कंदिलचार्य के पट्टधर थे, आपका नाम श्री नन्दीसूत्र की स्थविरावली में भी आता है हेमवन्त सूरि का समय विक्रम की पहिली शताब्दी का है । अतः हेमवन्त पटावली प्राचीन और प्रामाणिक व ही जा सकती है हेमवन्त पटावली में स्पष्ट लिखा है कि कलिङ्ग से राजा नंद जैनमूर्ति को मगध में लेगया, वह मूर्ति मगधेश महाराजा श्रेणिक ने स्थापित की थी, और यह बात सर्वथा मान्य भी कही जा सकती है । क्योंकि महाराजा श्रेणिक और नन्द के बीच केवल १५० डेढ़सौ वर्षों का अन्तर है । जिस मंदिर से राजा नद मति लेगया वह मन्दिर १५० वर्ष पर्व में बना हो तो यह बात सर्वथा मान्य हो सकती है।
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