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प्रकरण पांचवाँ
१३८ "प्रेवीस जिलाना मालाना गांम मा खोद काम करतां समय बे प्रतिमाएँ उपलब्ध थई, जेमा अंक प्रतिमा पर वीर सं० ८२ अने बीजी ऊपर वीर सं० १०४ वर्ष नो शिलालेख के अने पुरती कोशीश करवा थी ते मूर्तियों त्यांना जैनों ने मिली छै" जैनपत्र ता० २६.१.३०
(१३) वड़ली (अजमेर) का वीर सं० ८४ का शिलालेख । यह शिलालेख रायबहादुर पं० गौरीशंकरजी ओमा की शोध खोज से मिला है । इसपर लिखा है:"वीराय भगवते चतुरासिति वासे माझिामेके ।"
ओझाजी की लिपिमाला पुस्तक यह लेख अजमेर के अजायब घर में सुरक्षित और लेखक की खुद की निगाह से भी गुजरा हुआ है ।
इस लेख से भी यही प्रमाणित होता है कि यह शिलालेख वीर निर्वाण सं० ८४ में अंकित किया गया है। इस शिलालेख में बतलाई माझिमिका वही प्रसिद्ध पुरानी नगरी माध्यमिका है, जिसका उल्लेख भाष्यकार पतञ्जलि ने अपने महाभाष्य में किया है।
प्रस्तुत शिलालेख ने केवल जैनधर्म के इतिहास पर ही नहीं अपितु समग्र भारतीय इतिहास पर बड़ा भारी प्रभाव डाला है । विद्वद्वर्ग की ऐसी धारणा है कि आजतक के प्राप्त भारतीय शिला. लेखों में यह लेख सब से प्राचीन और महत्वपूर्ण है। श्रीमान् काशीप्रसाद जायसवाल और महामहोपाध्याय डॉ. सतीशचन्द्र
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