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________________ प्रकरण तीसरा .६६ वह मोक्ष का कारण क्यों नहीं होता है ? इस में पक्षपात के लावा दूसरा कोई कारण नजर नहीं श्राता है और इस ज्ञान युग में इस मिथ्या पक्षपात की हांसी के सिवाय क्या कीमत हो सकती है ? उपसंहार ९ - देवलोक में शाश्वति जिनप्रतिमाएँ हैं, वे सब तीर्थकरों की ही है और उन्हें कामदेव को कहने वाले शास्त्रों के बिलकुल अनभिज्ञ हैं । २ - जैन दर्शन स्याद्वाद को माननेवाला है, द्रव्यास्तिनयापेक्षा लोक को शाश्वता और पर्यायस्तिनयपेक्षा लोक को अशाश्वता मानते हैं । तदनुसार देवलोक और तत्रस्थित जिनप्रतिमाओं को भी शाश्वत मानते हैं । ३ - देवता सम्यग्दृष्टि होने से उनकी की हुई तीर्थकरों की वन्दना और तीर्थकरों की मूर्तियों की पूजा मोक्ष का कारण है । ४ - मूर्तिपूजा का फल यावत् मोक्ष का बतलाया है इस लिये मोक्षाभिलाषी जीवों को मूर्ति की द्रव्य भाव से यथाधिकार पूजा अवश्य करनी चाहिये । ५- इस प्रकार शास्त्रकारों की आज्ञा का पालन करने वाले ही सम्यग्दृष्टि कहला सकते हैं और जिन वचनों को न्यूनाधिक कहने वाला निन्हव मिथ्यात्वी को पंक्ति में समझा जाता है । ६ - इस प्रकरण को आद्योपान्त पढ़ कर यदि मिथ्यात्वोदय और उत्सूत्र प्ररूपकों के अधिक परिचय से झूठी श्रद्धा हृदय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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