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पूमा का फल यावत् मोक्ष हां, ऋषिजी की इतनी योग्यता न होने से वे शब्दों का अर्थ ठीक तौर से न कर सकें यह बात दूसरी है।
भगवान को वन्दन, संयम पालन और प्रभु पूजा करना यह तीनों मोक्ष के कारण हैं क्योंकि एक कार्य के अनेक कारण हुआ करते हैं यदि ऐसा न होता तो वन्दन और संयम दोनों को मोक्ष का कारण नहीं कहते । कारण संयम को अपेक्षा वन्दना में इतना कष्ट नहीं है तब मूर्तिपूजा में वन्दन तो आही जाता है वह मोक्षका कारण हो इस में तो सन्देह ही क्या हो सकता है क्योंकि पूर्वोक्त तीनों की भावना जन्म मरण मिटा के मोक्ष प्राप्त कर ने की है। इसलिये ही शास्त्रकारोंने तीनों कारणों का फल क्रमशः हित, सुख, कल्याण,मोक्ष और अनुगामी बतलाया है । क्या कोई व्यक्ति प्रभु पूजा का फल मोक्ष होने में किंचित् भी शंका कर सकते हैं ? नहीं । कदापि नहीं !! हरगिज नहीं !!!
कई लोग बिचारे भद्रिक लोगों को यों भ्रम में डाल देते हैं कि देवताओं को की हुई पूजा को तो हम मानते हैं पर इस में मोक्ष होना हम नहीं मानते हैं। क्योंकि देवता जिनप्रतिमा की पूजा करते हैं यह तो उनका जीताचार हैं। उत्तर में यह कहा जा सकता है कि तब तो श्राप देवताओं की की हुई तीर्थंकरों को वन्दना भी मोक्ष का कारण नहीं मानोगे ? क्योंकि वहां भी खास भगवान् ने श्रीमुख से फरमाया है कि "पोराणा मयं सुरियामा, जीयामेयं सुरियामा" हे सुर्याम तीर्थंकरों को वन्दन करना तुम्हारा पुराणा रिवाज और जोताचार हैं। यदि अरिहन्तों को वन्दन करना देवताओं का पुराणा रिवाज और जीताचार हैं और यह वन्दना मोक्ष का हेतु है तो देवता जीताचार से प्रभुपूजा करें
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