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अशाश्वनि मूर्तियों
यावत् क्रमशः मोक्ष का वर्णन आता है इस हालत में मोक्षाभिलाषी मुमुक्षु देवलोक के सदृश मंदिर बनाके जिनप्रतिमाओं की स्थापना करके उनकी द्रव्य भाव से पूजा कर अपना प्रात्मकल्याण करे, इसमें शंका या सवाल ही क्या हो सकता है ? श्री भारत चक्रवर्ती ने अष्टापद पर्वतपर चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस मन्दिर बनाकर तीर्थंकरों के शरीर वर्ण चिन्ह युक्त मृत्तियों उन मंदिरों में स्थापना की, सागर चक्रवर्ती के पुत्रों ने उनकी रक्षा को, सम्राट् रावण मंदोदरी ने वहाँ जाकर भक्ति की, गणधरगौतमस्वामी ने उस महान तीर्थ की यात्रा की, ऐसा उल्लेख जैनशास्त्रों में आज भी विद्यमान हैं और भी प्राचीनतम समय के जैनमंदिर मूर्तियों के विस्तृत प्रमाण जैन शाखों में मिल सकते हैं । परन्तु हमारे स्थानकमार्गी भाई केवल ३२ सूत्र मानने का आग्रह कर बैठे हैं । वह भी मूलसूत्र तथा उनका खुद का किया हुआ टब्बा अर्थात् भाषानुवादको मान्य कर उस पर हो विश्वास रखते हैं इसलिये मैं आज यहाँ पर उन महानुभावों की मान्यतानुसार ३२ सूत्र और सूत्रों के अनुवाद के प्रमाण देकर यह बतलाने का प्रयत्न करूँगा कि ३२ सूत्रों के मूलपाठ में अशाश्वति मूर्तियों का उल्लेख विस्तृत संख्या में मौजूद है। ... जहाँ जैनों की वस्ती हो वहाँ आत्म-कल्याण का साधन
जैन मंदिर मूर्तियों का होना स्वभाविक हैं जैनागमों में नगरों का वर्णन किया वहाँ भी इस बात को अच्छी तरह से बतलाया है कि नगरों के मुहल्ले २ में अरिहन्तों के मंदिर हैं हम यहाँ पर श्री उत्पातिक सूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन में आये हुए अरिहन्तों के मंदिरों का उल्लेख कर देते हैं।
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