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बत्तीस सूत्रों में मूर्तिपूजा
ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा मर्तिपूजा को सिद्ध कर बतलावेंगे। पाठक भ्यान पूर्वक पढ़ने का प्रयत्न करें। शुभम्
उपसंहार एक मूर्ति को न मानने से हमारे स्थानकमार्गी भाइयों को कितना नुकसान हुआ है उसको भी जरा पढ़ लीजिये।
(१) मूर्ति न मानने से जो लोग तीर्थ यात्रार्थ जाते थे, मास दो मास प्रारंभ, परिग्रह, व्यापार और गृह कार्य से निवृति पाते थे, ब्रह्मचर्य-व्रत पालन करते थे, शुभक्षेत्र में द्रव्य व्यय कर पुन्योपार्जन करते थे, उन सब कार्यों से उन्हें वंचित रहना पड़ा।
(२) द्रव्य पूजा नहीं करने वाले भी मन्दिर में जाकर नवकार की माला, नमोत्थुणं या स्तवन बोल तीर्थकरों की निरन्तर प्रतिज्ञापूर्वक भक्ति कर शुभकर्मोपार्जन तथा कर्म निर्जरा करते थे, उनसे वंचित रहे, वे उा.टे निन्दाकर कर्मबन्ध करने लगे।
(३) मूर्ति नहीं मानने के कारण ही वे लाखों करोड़ों रुपये की लागत के मन्दिर जो उनके पूर्वजों ने बनवाये उनके हक से भी वंचित रहे।
(४) मूर्ति नहीं मानने के कारण ही वे ३२ सूत्रों के अलावे ज्ञान के समुद्र सूत्र व हजारों प्रन्थों से दूर भटकन लगे। यदि कोई उन ग्रन्थों को पढ़के ज्ञान हामिल करते भी हैं. पर जब चर्चा का काम पड़ता है तब उन ज्ञानदाता ग्रन्थों को अप्रमाणिक बतलाकरव अविनयकर कर्मबन्धन करते हैं ।
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