________________
१०४
प्रकरण चतुर्थ . स्वामि जेठमलजी.
"तएणं सा दोवइ रायवर कन्ना जेणवमज्जणघरं तेणव उवागन्छइ २ ता मजणघरं मणुप्पवेसइ २ ता रहाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायलीत सुद्ध प्पवेसाइ मंगलाइं वत्थाई पव्वर परिहिया मज्जणघराओ पडिणिक्खमई २ ता जेणेव जिणधरे तेणेव उवागच्छइ २ ता जिणधर मणुप्पवेसइ जिणपडिमाणं बालोय पणामं करइ २ ता लामहथं पम्हज्जइ एवं जहां सुरियाभो जिणपड़ियाओ अचणइ तेहव भाणियाब्वं जाव धूवडहइ २ ता वाम जाण अचई २ ता दाहिणं जाणू धरणि तल सनिवइ २ ता तिखतो मुद्धाण घरणि तल निवसइ २ ता इसिं पच्चूणमइ २ ता करयल जाब तिकट्टु एवं वयासी नमोत्थणं अरिहंताएं भगवताणं जाव संपताएँ वंद णमंसह २ ता"।
समकित सार ग्रन्थ पृष्ट ७०
स्था० साधु अनमोलखर्षिजी
"ततेणं सा देवती रायवर कन्ना काल्लं पाउप्पभाए जेणेव मज्जणघरं तेणव उवागच्छह २ ता मज्जणघरं मणुप्पवंसइ २ ता रहाय जाव सुद्ध पावसई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिया जिरापडिमाणं प्रचणं करेति २ ता जेणेव अंतेउर तेणेव उवागच्छई"
श्री ज्ञातासूत्र पृष्ट ६२४
- X
X
X
हिन्दी अनुवाद
प्रातःकाल होते ही राज. कन्या द्रौपदी मज्जनगृह में गई वहाँ स्नान किया यावत् राजसमा में प्रवेश करने योग्य शुद्ध वस पहिने जिनप्रतिमा की अर्चन की फिर अंतपुर में भाई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org