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तुंगिया नगरी के श्रावकों की पूजा
पर लिख दिया कि स्नान करने के बाद पीटी ( तेल श्राठा मिश्रित मालस ) करी ऋषिजी पक्षपात के कारण लोक व्यवहार को भी भूल गये क्या कोई समझदार व्यक्ति स्नान करने के बाद मालिश करते होंगे ? कदापि नहीं ? इतना ही क्यों आप ने उन श्रावकों ने स्नान कर पूजा की थी उस ' कयवलिकम्मा' पाठ का असली अर्थ छोड़ कर उसके स्थान अर्थ
कर डाला कि स्नान करके कोगला ( कुडां ) किया यह भी लोक विरुद्ध ही है स्नान करने के पूर्व तो मालश या कुडां करते हैं पर स्नान करने के बाद तो पीटी-कुला करना इन स्थानकवासियों से ही सुना है आगे 'प- महग्घ' पाठ का अर्थ किया है कि अल्प मूल्यवान वस्त्र पहिना और इस पाठ का अर्थ होता है अल्प वजन और • बहुमूल्य वाले वस्त्र भूषण पहिनना और यह बात भी ठीक है कि श्राचार्यादि मुनियों के दर्शनार्थ जाते समय बहुमूल्य वस्त्र भूषणों से शरीर को अलंकृत करना श्रावकों का खास कर्त्तव्य भी है कारण इससे श्रानंद का और अवसर ही क्या हो सकता है ।
वास्तव में ऋषिजी के हृदय में मूत्तिपूजा प्रति कितना द्वेष ठाँस ठाँस के भरा हुआ है कि कयवलिकम्मा० पाठ का अर्थ पूर्वाचाय्यों ने देवपूजा किया है और लौंकागच्छाचार्यों ने भी इस पाठ का अर्थ देवपूजा ही किया है उसको बदल कर 'कयबलिकम्मा' पाठका संबंधित पीटी या कोडा करना अर्थ र सभ्य समाज में ये कैसे हाँसी के पात्र बने हैं । इस लिये ही कहा है किभिज्ञों के लिये शास्त्र ही शस्त्र का काम करता है ।
कई लोग यह भी सवाल कर बैठते हैं कि 'कयवलिकम्मा'
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