________________
सुरियभदेव की भावना
- ऋषिजी का हिन्दी अनुवाद-तब वह सूर्याभदेव को पंच प्रकार की पर्याप्ती को पर्याप्त हुवे बाद इस प्रकार अध्यवसाय चिन्तवन प्रार्थना मनोगत संकल्प समुत्पन्न हुवा कि क्या मुझे प्रथम करने योग्य हैं, क्या मुझे पीछे करने योग्य हैं, क्या मुझे प्रथम श्रेयकर है क्या मुझे पीछे श्रेयकर है क्या मुझे प्रथम और पीछे हितकर्ता सुखकर्ता, क्षमाकाकर्ता, निस्तारकाकर्ता, अनु. गामी यानि साथ आने वाला होवेगा।
सूर्याभ के इन प्रश्नों के उत्तर में शास्त्रकार फरमाते हैं कि
"तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणिया परिसो ववरणगा देवा सूरियाभस्स इमेयारूवे अज्झस्थियं जाव समुप्पन्न समभि जाणिता जेणेव सुरियाभ देवे तेणेव उवागच्छाई २ता सूरियाभ देवं करयल परिग्गहियं सिरसा वत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेति २ ता एवं वयासी एवं खलु देवाणु प्पियाणं सूरियाभेषिमाणे सिद्धायणंसि अठ्ठसयं जिणपडिमाण जिणुस्सह प्पमाणामेत्ताणं सन्निवित्तं चिड्ढंति, सभाए सहम्माए माणवत चेइंएखभे वइरामय गोलवछ समुगाए बहुओ जिणस्स कहानो सन्निक्खिताओ चिट्ठति ताआणं देवाणु प्पियाणं अन्निसिंच वहुणं वेमाणियाणं देवाणय देवीणय अचाण ज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ तं एयणं देवाणुप्पियाणं पुब्बि करणिजं तं एयणं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्जं तं एयणं देवाणुप्पियाणं पुब्बिसेयं एयणं देवाणुप्पियाणं पच्छा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org