________________
मूर्तिपूजा की प्राचीनता ।
पड़ा। अपितु भारतीय जनता अपने आर्य धर्म और उनके मन्तव्यों पर अटल रही ।
विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में देहली पर मुस्लिम सत्ता का अमल हुआ और वे मत - मदान्धता के कारण तलवार के पाशविक बल पर कई भाद्रिक अज्ञात लोगों को हिन्दुधर्म से पतित बना कर अपने अन्दर मिलाने लगे । पर उसमें उन्हें पूरी सफलता नहीं मिली। जो थोड़े बहुत विधर्मी हुए, उनमें भी अधिकांश स्वार्थी और धर्म से नितान्त अनभिज्ञ लोग ही थे । फिर भी उस विकट समय में हमारे भारतीय धर्मवीरों पर उस श्रनार्य संस्कृति का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा । अर्थात् वे अपनी आर्य संस्कृति से तनिक भी विमुख न हुए ।
आगे चलकर विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में मालवा और गुर्जर भूमि पर मुसलमानों का अधिकार कायम हुआ और aatr शिल्पकला के अनेक भव्य मंदिर नष्ट भ्रष्ट कर चार्य प्रजा को अनेकानेक कष्ट पहुँचाए । यहाँ तक कि उनके धन-माल को लूट कर प्रारण दण्ड देने में भी उन अनायों ने कमी नहीं रक्खी, किंतु इतना कुछ होने पर भी उन आर्य धर्मवीरों के दिल पर अनार्य संस्कृति का जरा भी असर नहीं हुआ । श्रपितु प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी धर्मपर श्रद्धा, मूर्तिपूजा पर अधिकाधिक विश्वास और भक्तिभाव बढ़ता ही गया। मंदिर मूर्तियों के शिलालेखों से इस बात का पता मिलता है कि उस कटकटी के समय में भी पूर्व मंदिरों की अपेक्षा नये मंदिर अधिक बने थे । उदहारण लीजिये: - वि० सं० १३६९ में मुसलमानों ने शत्रुञ्जय के सम्पूर्ण मंदिरों का उच्छेद कर दिया, और वि० सं० १३७१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org