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प्रकरण पहिला
प्रमाणों द्वारा नहीं पर केवल तलवार के बल पर ही किया । बस ? इसी कारण आपका प्रभाव जनता पर इतना नहीं पड़ा कि वे मूर्तिपूजा को छोड़कर एक दम से नास्तिक बन जायें ।
इतिहास स्पष्ट बतला रहा है कि आर्य प्रजा में तो क्या पर विक्रम की चौदहवीं शताब्दी तक जर्मन आदि पाश्चात्य प्रदेशों में भी मूर्तिपूजा का काफी प्रचार था। इतना ही नहीं पर उस समय उन प्रान्तों में जैन मन्दिर भी विद्यमान थे। जिनके ध्वंसावशेष खोज करने पर आज भी प्रचुरता से प्राप्त हो रहे हैं । जैसे अष्ट्रिया में महावीर मूर्ति, अमेरिका से ताम्रमय सिद्धचक्र का गट्टा, मंगोलिया प्रांत में अनेक मूर्त्तिएँ वगैरह के भग्नखण्ड मिलते हैं। इतनाही क्यों, खास मक्का मदीना में जैन मंदिर थे । परन्तु जब वहाँ जैनमूर्त्ति पूजने वाला कोई जैन ही नहीं रहा तब मूर्त्तिएँ मधुमति (महुवा बन्दर) में लाई गई। जिस प्रदेश में सबसे पहिला मूर्तिपूजा का विरोध पैदा हुआ था वह प्रदेश आज भी मूर्तिपूजा से विहीन नहीं है । तथा आधुनिक देशाटन करने वालों से यह बात भी छिपी हुई नहीं है कि भूमिका कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं है कि जहाँ मूर्तिपूजा का प्रचार न हो । अर्थात् आज भी सर्वत्र मूर्त्तिपूजा प्रचलित है । हाँ कोई व्यक्तिगत मूर्त्तिपूजा नहीं 1 मानता हो तो यह बात अलग है ।
मुस्लिम मत की स्थापना के अनन्तर मुसलमानों ने भारत पर कई बार आक्रमण किए, और धर्मान्धता के कारण कई शिल्पकला के आदर्श आर्य मन्दिरमूर्त्तियों को तोड़-फोड़ कर नष्टभ्रष्ट कर डाला । परन्तु विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी तक भारत की आर्यप्रजा पर मुस्लिम संस्कृति का थोड़ा भी प्रभाव नहीं
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