________________
( ६८ ) १६४-आपके साधु पूजा में धर्म बताते हैं ? , १६५-भाव-पूजा के अलावा द्रव्य पूजा में भी ? , १६६-ऐसा करना साधु का कल्प नहीं है ? १६७-वे असंयति अवृति है ? १६८-पुन्य अवश्य होता है ? १६९-क्यों नहीं अवश्य होता है ? १७०-आपके साधु ग्रहस्थों को पू. उपदेश देते हैं ? १७१-हाँ ऐसा जरूर करते हैं ? १७२-व्याख्यान सुनने का अनुमोदन है ? १७३–पर सचित द्रव्यों का उपमर्दन तो श्रा० ? १७४-वीतराग की वाणी सुने का अनु० ? , १७५-व्याख्यान सुनने से लाभ भी होता है तो ? ,, १७६-चार अङ्ग मिलना दुर्लभ बताया है ? , १७७-दानशीलादि यदि सूत्र में नहीं है तो ? , १७८ -आपका उत्तर सुनने में मुझे बड़ा ही आनंद ? ,, १७९-तीर्थ चार प्रकार के कहे हैं शत्रुजय० १ ,, १८०-साधु, साध्वी, श्राविक और श्राविकाएँ ? , १८१ - तीर्थकर साधु तीर्थ में होगा ? , १८२.--आप तो ऐसा उत्तर देते हो कि हम ?. १८३-चरित्रानुवाद और विधिवाद ? १८४-हाँ मैंने समझ लिया है ? १८५-हमारे विधानों के लिये भी लागू हो ? १८६- मेघ कुवार की दीक्षा ? १८७-मैंने सुना है कि अतिक्रमण करना श्राव. १ ,
३१४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org