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द्वादशानुप्रेक्षाधिकार: ]
शरीरमप्यन्यदिदं, किं पुनर्यद्वहिर्द्रव्यं नान्यदिति ? तस्माज्ज्ञानं दर्शनमात्मेत्येवं चिन्तयान्यत्वमिति ॥७०४॥ संसारस्य स्वरूपं विवृण्वन्नाह---
मिच्छत्तणाछण्णो मग्गं जिनदेसिदं अपेक्खंतो।
भमिहदि भीमकुडिल्ले जीवो संसारकंतारे ॥७०५।। मिथ्यात्वेनाछन्नोऽश्रद्धानतमसा समंतादावृतः 'मार्गः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि' तं जिनदर्शितं जिनेन प्रतिपादितमपश्यन् अज्ञानादभ्रमत्ययं जीवः, संसारकान्तारे संसाराटव्यां, भीमे भयानके, कुटिलेऽतीवगहने मोहवल्यादिनिबद्ध इति ।।७०५।। चतुर्विध संसारस्वरूपमाह
दव्वे खेत्ते काले भावे य चदुविहो य संसारो।
चदुगदिगमणणिबद्धो बहुप्ययारेहिं णादवो ॥७०६॥ संसरणं संमार: परिवर्तनं, तच्चतुर्विधं द्रव्यपरिवर्तनं क्षेत्रपरिवर्तनं कालपरिवर्तनं भावपरिवर्तनं, भवपरिवर्तनं चात्रैव द्रष्टव्यमन्यत्र पंचविधस्योपदेशादिति । तत्र द्रव्यपरिवर्तन द्विविध नोकर्मपरिवर्तनं कर्म परिवर्तन चेति । तत्र नोकर्मपरिवर्तन नाम त्रयाणां शरीराणां पण्णां पर्याप्तीनां योग्या ये पुदगला एकेन जीवेनकस्मिन् समये गृहीता: स्निग्ध रूमवर्णगंधादिभिन्नास्ती वमन्दमध्यभावेन च यथावस्थिता द्वितीयादिष
प्राचारवत्ति-जब यह शरीर भी आत्मा से भिन्न है तो पुनः ये बाह्य द्रव्य गृह आदि क्या भिन्न नहीं होंगे ? अर्थात् वे प्रकट रूप से भिन्न हैं। इसलिए ज्ञान-दर्शनरूप ही मेरी आत्मा है ऐसी अन्यत्व भावना का चिन्तवन करो। यह अन्यत्व भावना हुई।
संसार का स्वरूप बताते हैं--
गाथार्थ-मिथ्यात्व से सहित हुआ जीव जिनेन्द्र कथित मोक्षमार्ग को न देखता हुआ भयंकर और कुटिल ऐसे संसार-वन में भ्रमण करता है ।।७०५॥
___ आचारवृत्ति-तत्त्वों के अश्रद्धानरूपी अन्धकार से सब तरफ से ढका हुआ यह जीव जिनेन्द्रदेव द्वारा प्रतिपादित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रमय मार्ग को नहीं देखता हुआ, अज्ञानवश अतीव गहन, मोहरूपी बेल आदि से निबद्ध हो संसाररूपी भयानक वन में भटकता रहता है।
चार प्रकार के संसार का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप चतुर्विध संसार है । यह चतुर्गति के गमन से संयुक्त है। इसे अनेक प्रकार से जानना चाहिए ।।७०६॥
प्राचारवृत्ति-संसरण करना, परिवर्तन करना संसार है। उसके चार भेद हैं-द्रव्य परिवर्तन, क्षेत्रपरिवर्तन, कालपरिवर्तन और भावपरिवर्तन । भवपरिवर्तन को भी इन्हीं में समझना चाहिए, क्योंकि अन्यत्र ग्रन्थों में पाँच प्रकार के संसार का उपदेश किया गया है।
१. द्रव्य परिवर्तन दो प्रकार का है-नोकर्म परिवर्तन और कर्मपरिवर्तन । उनमें नोकर्म परिवर्तन का स्वरूप बताते हैं
एक जीव एक समय में तीन शरीर-औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और छह पर्या
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