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अन्तस्तल-दर्शी स्वामी सत्यभक्त
[ लेखक- सुरजन्बन्द सत्यप्रेमी ]
जैन धर्म की मीमांसा में फैलाया निज बौद्धिक बल दूर किया समयोचित जिसने सारा छद्मन्थों का छन् ! प्रकट हुआ श्री वीतराग-विभु की संस्कृति का निर्मल जल
सत्यम विन कौन समझता महावीर का अन्तस्तत ॥
सभी तरह का पक्ष छोड़कर शुद्ध सत्य संधान किया, विश्लेषण कर घटनाओं का तत्वज्ञान मिलन किया।
aha यशोदा वीरपत्नि को सच्चे यश का दान किया. वर्द्धमान के निजमुत्र से ही, यह इतिवृत्त विधान किया !!
जिनवर दैनंदिनी रूप में अपना चरित सुनाते हैं. मानों सत्यभक्त, जीवन का ध्रुव रहस्य सम् । सारे अनुभव को निचोड सामान हमें पि
अनेकान्त सिद्धांत रूप सम्यक समभाव है।
द्रव्यक्षेत्र युत कालभाव लख तब सुधार अपनायेंगे. विविध अपेक्षा से समाज या शालन कार्य चलायेंगे। नयभंगो का न समझकर जगन्ना लोकोत्तर निर्मल स्वभाव में हम शायेंगे।