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महावीर का अन्तस्तल
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हैं वे ही पूर्ण सम्यग्ज्ञानी, केवली या बुद्ध हैं । इन तत्वों के अनुरूप आचरण करने लगना मन को पवित्र बनाना ही सम्यक चारित्र है । जो इस चरित्र को पूर्ण कर जाते हैं जो अपनी दुर्वासनाओं को जीत लेते हैं और अपना जीवन स्वपर कल्याणकारी बनालेते हैं वे ही जिन हैं अहंत हैं। इन तत्वों को मैं खोज चुका हूं । बहुत कुछ अनुभव में भी ले आया हूं फिर भी थोड़ी कमी मालूम होती है । कुछ दिनों में वह कभी भी दूर होजायगी।
किसी चीज के मूल को या सार को तत्व कहते हैं। आत्मकल्याण या स्वपर कल्याण के लिये मूलभूत ये सात बात है इसलिये मैं इन्हें तत्व कहता हूं। ये सार तत्व ही मेरी धर्मसं. स्थाकी आधारशिला है।
५९ पुण्याप १६टुंगी ९४४२ इ सं.
परसों तत्वों के बारे में जो निर्णय किया था, उसके विषय में कुछ और गहराई से विचार हुआ। इसमें सन्देह नहीं कि पूर्ण सुखशांति के लिये समी तरह के आश्रवों का त्याग करना चाहिय । पर इस प्रकार की विशुद्ध परिणति हर एक व्यक्ति नहीं कर सकता, वह अशुद्ध परिणतियों में चुनाव ही कर सकता है । इसलिये आश्रवों में शुभ अशुभ का भेद करना पड़ेगा । यद्यपि शुभ भी अशुद्ध है और हानिकर भी है, फिर भी अशुभ की अपेक्षा शुभ बहुत अच्छा है और शुद्ध अवस्था को प्राप्त करने के लिये भी अनुकूल है। अशुभ से शुद्ध को पाना जितना कठिन है शुभ से शुद्ध का पाना अतना कठिन नहीं है ।
अशुभ परिणति में मनुष्य स्वार्थ के लिये वुगई करता है। शुभ परिणति में स्वार्थ को गौणकर भलाई करता है। शुद्ध,परिणति में भी शुभ की ही तरह स्वार्थ को गोणकर मलाई