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महावीर का अन्तस्तल '
एक अंश सें अनित्य, एक अंश से समान या अभिन्न है और दूसरे अंश से विशेष या भिन्न । इस प्रकार वस्तु तो अनेकधर्मात्मक है, और आप लोग एक ही धर्म को पकड़कर रह जाते हैं, इससे व्यवहार में असंगति आजाती है और इसका फल आप लोग देख ही रहे हैं। . ___इसके बाद मैंने अन्हें अनेकांत सिद्धांत पर विस्तार से समझाया।
पंडितों ने कहा-अब हम अपनी भूल अच्छी तरह से समझ गये गुरुदेव । अव हम इस सचाई को पाकर मर भी जायँ तो भी समझेंगे कि घाटे में नहीं हैं।
इतने में राजा श्रेणिक आपहुँचे । मैने कहा राजन् , आपका काम हो चुका, इनको प्राणदण्ड मिल चुका और इनका पुनर्जन्म भी होगया।
श्रेणिक ने आश्चर्य से पूछा-यह क्या रहस्य है भगवन ।
मैंने कहा-रहस्य कुछ नहीं हैं सीधी बात है । जो एकांतवादी कुलकर, मृगाक्ष, प्रभाकर और कौलिक एकांतवाद के कारण अपना और जगत् का अकल्याण कर रहे थे वे मर चुके, अब उनन स्याद्वादी बनकर नये रूप में जन्म लिया है अब इन्हें दण्ड देने की क्या जरूरत ? जब पापी का पाप मरगया तव पापी कहां रहा. जिसे दण्ड दिया जाय ? .
श्रेणिक-- बहुत ठीक किया भगवन आपने । आपका न्याय एक राजा के न्याय से बहुत ऊंचा है बहुत कल्याणकारी है ।
___८३--परिचित को ईर्ष्या १७ सत्येशा ६४५० इ. सं.
आईक मुनि ने गोशालक के साथ हुई चची का विव___रण दिया । मेरे बढ़ते हुए प्रभाव से गोशालक का हृदय ईयां