Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 382
________________ ३५० ] फिर भी दोनों के अलग अलग तीर्थ हैं। अब उस युग को बीते ढाई हजार वर्ष होगये हैं, क्षेत्रीय सम्बन्ध पहिले से सैकड़ों गुणा बढ़गया है सारी पृथ्वी का एक सम्बन्ध होगया है । पिछली कुछ शताब्दियों में जो वैज्ञानिक प्रगति हुई है वह पहिले के हजारों वर्षों की प्रगति से भी बीसों गुणी है । महावीर का अन्तस्तल 525 इन सब बातों का जब हम विचार करते हैं तब कहना पड़ता है कि मगध और उसके आसपास के इलाके को ध्यान में रखकर ढाई हजार वर्ष पहिले बने हुए धर्म तीर्थ से अब काम नहीं चल सकता। खासकर जब कि इस लम्बे समय में वह तीर्थ जीर्ण शीर्ण होगया है । अब तो झुसके उत्तराधिकारी के रूप में किसी नये तीर्थ की जरूरत है । वह है सत्यसमाज | अब वैज्ञानिक साधनों ने सारी पृथ्वी से सम्बन्ध जोड़ दिया है, भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान, प्राणिविज्ञान, विश्वरचना आदि के क्षेत्र में विशाल सामग्री इकट्टी कर दी है, पुरानी मान्यताएं टूट चुकी है, नये सिद्धान्त उनका स्थान लेचुके हैं । धर्म और विज्ञान के मिलाने का पुराना तरीका चेकार पड़गया है नये तरीके से उनके समन्वय की जरूरत आपड़ी है । राजनति और अर्थशास्त्र के रूपमें जमीन आसमान का फर्क पैदा होगया है । इन सब बातों का ध्यान रखकर ही नये तथिं की जरूरत है । सत्यसमाज ने इन सब समस्याओं को युगानुरूप और वैज्ञानिक ढंग से सुलझाया है। इसके चौबीस सूत्र जीवन के तथा समाज के हर सवाल पर प्रकाश डालते हैं । सत्यसमाज में जैनधर्म के अनेकान्त का फैला हुआ विकसितरूप साफ दिखाई देता है । सत्यलमाज, हिन्दू मुसलमान जैन बौद्ध ईसाई, आदि सभी का समन्वय करता है । ३६३ मतों का समन्वय करने वाले

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