Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

View full book text
Previous | Next

Page 347
________________ महावीर का अन्तस्तल . [३१५ गौतम-संघ में क्या मिथ्यात्वी नहीं होते ? जहां जो भूल करता है वहां वह झुतने अंश में मिथ्यात्वी ही है । अगर x वे मिथ्यात्वी अपनी बात पर बड़जायँ तो सत्य की तो वुट्टी बुट्टी • लुटजाय । जमालि- पर एक आदमी जितनी भूल कर सकता है उतनी भूल बहुत आदमी नहीं कर सकते। गौतम-हम संघ में जितने आदमी हैं उन सब को वह सत्य क्यों नहीं सूझा जो अकेले भगवान को सझ गया था । हम सब बहुत थे फिर भी भूल में थे, और भगवान अकेले थे फिर भी सत्यमय थे। जांच परखकर हम सब भगवान की तरफ झुके । क्या अब भी सन्देह है कि हम सब के सत्य की अपेक्षा भगवान का सत्य कितना महान है ? क्या बहुमत के आधार पर, हम वह सत्य पासकते थे ? इसलिय तो भगवान जनमत की पर्वाह नहीं करते, जनहित की पर्वाह करते हैं। जमालि-जनहित की पर्वाह तो मैं भी करता हूं। गौतम-न तुम जनमत की पर्वाह करते हो न जनहित की, न सत्य की । तुम्हें पर्वाह है अपने गुरु की सम्पत्ति चुरा. कर उसपर अपने नाम की छाप मारने की । पर इससे सत्य की भयंकर अवहेलना होगी। सोने को पीतल के नाम से बाजार में वेचना मूर्खता है। भगवान का सत्य तुम सरीखे लोगों का सत्य कहलाकर बाजार में लाया जाय इससे बढ़कर सत्य की विडं. बना क्या होगी? जमालि-भगवान का नाम ऐसा क्या बड़ा है ? गौतम-नाम किसी का बड़ा नहीं होता । काम से नाम वड़ा हो जाता है। भगवान ने जो सत्य की खोज का महान कार्य किया सुसी से उनका नाम बड़ा हो गया । उनका माल

Loading...

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387