Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 361
________________ महावीर का अन्तस्तल [३२६ जाना चाहते हैं कि इसमें किसी धर्म का खण्डन नहीं होता । न हिंसा होती है, न झूठ, न चोरी, न परिग्रह । फिर दोप क्या है ? इसलिये धर्म के पांच भेद करना आवश्यक है । देशकाल के अनुसार धर्म का विवेचन और भेद प्रभेद करना पड़ते हैं। - केशी- ठीक है। यह कारण समझमें आया, पर नग्न वेष क्यों चलाया ? गौतम-वेप तो लोगों को यह विश्वास कराने के लिये है कि यह साधु है । सो नग्न वेपसे भी यह बात मालूम होजाती - ह। यो वेप कल्याण का साधक नहीं है, कल्याण का साधक तो दर्शन ज्ञान चारित्र ही है । इसलिये वेष बदलने से कोई हानि नहीं है । सुविधानुसार कोई भी वेप नियत किया जासकता है। केशी-ठीक है, किसी भी वेप से काम चल सकता है। महत्व वेप को नहीं, किन्तु आत्मशुद्धि को है, पर यह आत्मशुद्धि हो कैसे ? आत्मा में हजारों विकार पार्श्वप्रभु ने बताये हैं पर एक साथ उन्हें कैसे नष्ट किया जाय इसका क्रम हमें नहीं मालूम । आपके तीर्थकर ने क्या इसका कोई क्रम बताया है ? गौतम बताया है। पहिले मिथ्यात्व को नष्ट करना चाहिये । क्योंकि यही सब अनर्थों की जड़ है । इसके बाद क्रोधमान माया लोभ इन चार कपायों को जीत लेना चाहिये । इन पांचों के जीत लेने पर पांच इन्द्रियों वश में होजाती हैं। इन दस के जीत लेने पर हजारों वश में होजाते हैं। ... . केशी-ठोक है । यह क्रम योग्य है। पर यह मिथ्यात्व छूटे कैसे ? मनुप्य संस्कारों के और परिस्थिति के बन्धनों में बँधा हुआ है, उससे वह स्वतंत्र कैसे बने ? _ गौतम-अपनी वस्तुका राग और पराई वस्तुमा हे छोड़ देने से यह भी छूट जाता है। अगर मनुष्य यह सोचले कि

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