Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 369
________________ महावीर का अन्तस्तल [३३७ rammar~~~~~ AAAAAAAR में इसलिये पूछा गौतम-कोई कोई लोग कहते हैं कि शील श्रेष्ठ हैं कोई कोई कहते हैं त श्रेष्ठ है । इस विषय में आपका क्या विचार है ? मैं-जो इतवान् नहीं किन्तु शीलवान है वे देशाराधक (एक अंश के रूपमें धर्म की आराधना करने वाले ) हैं । जो शीलवान नहीं रुतवान है वे देश विराधक है। जिनके पास दोनों है वे सर्वाराधक हैं। जिनके पास दोनों नहीं हैं चे सर्वविराधक हैं। गौतम-बहुत से लोग जीव और जीवात्मा को अलग अलग मानते हैं। इस विषय में आपका क्या विचार है ? म-जीव और जीवात्मा दोनों एक हैं। गौतम-कोई कोई कहते हैं कि केवली के शरीर में यक्षावेश होजाय तो वे भी असत्य बोल सकते हैं, आप क्या कहते हैं ? . मैं-ज्ञानियों के यक्षावेश नहीं होता। ९९-- पञ्चास्तिकाय २७-जिन्नो ९४६४ इ. सं. राजगृह से पृष्टचम्पा गया, वहां पिठर गांगलि आदि की दीक्षाएँ हुई। वहां से फिर राजगृह लौटकर गुणशिल चैत्य में उहरा। याज मददुक आया और उसने कहा कि मुझे रास्तेमें कालोदायी आदि अन्यतीर्थिक मिले थे । झुनने मुझसे पञ्चास्तिकाय का स्वरूप पूछा। मैंने बताते हुए कहा- इनमें एक चेतनकाय है और बाकी चार अचेतनकाय । एक पुद्गल-मूर्तिक है, बाकी अमूर्तिक है।

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