Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 368
________________ . ३३६] महावीर का अन्तस्तल आदि देशों का विहार कर ग्रीष्मकालमें फिर विदेह भूमि लौटा। वाणिज्य ग्राम के दूतीपलास चत्य में ठहरा हूं। आज गांगेय नामक एक पित्य श्रमण ने नरक आदि गतियों क बारेमें तथा प्राणियों की उत्पत्ति क बारे में बहुत प्रश्न किये । प्रश्नों के अत्तरों से सन्तुष्ट होकर उसने पूछा आप ये बातें किस आधार से कहते हैं ? क्या शास्त्र के आधार से? मैं-नहीं, शास्त्र के आधार की केवली को जरूरत नहीं होती। गांगेय-तो तर्क के आधार से ? में-नहीं, हेतु न मिलने से तर्क का आधार भी नहीं है । गांगेय-तो इन्द्रिय प्रत्यक्ष से ? मैं-देशान्तरित होने से ये इन्द्रिय प्रत्यक्ष के भी विषय नहीं है। गांगेय तब कैसे ? मैं-भीतर के दिव्यानुभव से, मानस प्रत्यक्षसे । गांगेय को इससे सन्तोप हुआ ओर उसने पार्थापत्यों की परम्परा छोड़ मेरे धर्ममें दक्षिा लेलो । ९८- गौतम प्रश्न ३ सत्येशा ६४६४ इ. सं वैशाली में बत्तीसवां वर्षावास विताकर भ्रमण करता हुआ राजगृह आया । गुणशील चत्य में ठहरा । आज यहां गौतम ने दूसरे दर्शनों से तुलना करते हुए मेरे विचार जानना चाहे ।

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