Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ ३३४ महावीर का अन्तस्तल -~ - ~ - ~ ~ - ~ साधना के समाचार मिले । मैंने उसे शाबासी दी। इसी तरह तपस्या करने के लिये श्रमण श्रमणियों को प्रेरित किया। चम्पा से दशाणपुर होता हुआ विदेह भूमि में इस वाणिज्य ग्राम में ठहरा हूं। यहां सोमिल ब्राह्मण बहुत विद्वान है। वह अपने शिष्य परिवार सहित मेरे पास आया, और कुछ प्रश्न पूछे । 'सोमिल-आपके धर्म में यात्रा क्या है ? मैं-स्वाध्याय ध्यान आदि के द्वारा ज्ञान जगत् में भ्रमण करना यही यात्रा है। सोमिल-आपके यहां भोग क्या है ? मैं-दो तरह के भोग हैं । इन्द्रियभोग तो यह है कि इन्द्रियां वश में रक्खो जिससे किसी भी तरह के विषयसे कोई कष्ट न होने पावे और अनिन्द्रिय भोग यह है कि क्रोध मान माया लोम का त्याग करो जिससे मनमें किसी तरह की अशांति बाद न होने पाया जिससे मन वह है कि क्रोध सोमिल- आपके यहां स्वास्थ्य क्या है ? मैं- संयम और तप से शरीर में विकार नहीं जमने पाते है इससे शरीर नीरोग रहता है यह स्वास्थ्य है। सोमिल-आप निर्दोष विहार कसे करते हैं-मैं ऐसी जगह नहीं ठहरता जहां ठहरने से दूसरों की उचित सुविधाओं में बाधा हो, यही मेरा निदोंप विहार है। सोमिल- आप एक हैं या अनेक ? मैं- आत्मद्रव्य दृष्टिसे एक, गुण पर्याय या कार्य दृष्टि से अनेक। सोमिल-आप नित्य हैं या अनित्य ? में-द्रव्य दृष्टि से नित्य, पर्याय दृष्टिसे अनित्य ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387