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महावीर का अन्तस्तल .
आधार चाहता है । साधारणतः पृथ्वी सब का आधार मानाजाता है पर जो पृथ्वी जल आदि सभी द्रव्यों का आधार है वह आकाशास्तिकाय है।
कालोदायी- यह बात भी ठीक ही मालूम होती है भंते । आपका पथ बहुत युक्तियुक्त मालूम होता है भंते ! कृपाकर अब आप अपने तीर्थका विशेष प्रवचन करें।
मैने अपने धर्म का विस्तार से विवेचन किया। इससे कालोदायी दीक्षित होगया।
१००-भेदभाव का बहाना १६ बुधी ६४६५ इ. सं.
नालन्दा के एक धनिक लेप के हस्तियाम उद्यान में टहरा हूँ । गष्मि ऋतु के लिये यह मुद्यान बहुत अच्छा है। इसके पास में एक उदक शाला ( स्नान गृह ) भी है। तीर्थकर पार्श्वनाथजी का अनुयायी एक उद्दक नाम का श्रमण भी ठहरा है। याज गौतम से उसकी बातचीत हुई। मनुष्य भेदभाव बनाये रखने के लिये जान में या अनजान में किस प्रकार बहाने दूँद लता है, जानकर आश्चर्य होता है। जहां भेद का कोई कारण नहीं होता वहां भी मनुष्य हास्यास्पद भेद बना लेता है । उद्दक ने भी इसी प्रकार के भेद की कल्पना कर रक्खी थी। उसने गौतम से कहा
आप लोग श्रमणोपासक को इस प्रकार प्रतिज्ञा कराते है-"राजदंड देने के अतिरिक्त मैं किसी त्रसजीव की हिंसा न फर्मगा" इस प्रतिज्ञा के अनुसार यह स्थावर जीव की हिंसा करता है। पर स्थविर भी कभी बस रहा होगा इस दृष्टि से स्थावर भी त्रस है और स्थावर की हिंसा में प्रतिज्ञाभंग का दोप लगता है इसलिये प्रतिज्ञा में ऐसा शब्द डालिये कि त्रस.